Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : श्रावण :
शुद्धात्मअनुभूति
अमने सदा प्रगट हो
जैनशासन शुद्धात्मानी अनुभूतिमां समाय छे;
शुद्धअनुभूतिथी जे बहार ते बधुंय जैनशासनथी बहार.
शुद्धआत्मानी अनुभूति वगर जैनशासनना मर्मनी खबर पडे नहि.
शुद्धात्मानी अनुभूति ए ज जैनशासनमां उपादेय छे. ए
शुद्धात्मअनुभूति आनंद भरेली छे.
(कलशटीका प्रवचन)
सन्तो अखंड अनुभूतिनी ने केवळज्ञान प्रकाशनी ज भावना करे छे–
अखंडितमनाकुलं ज्वलदनन्तमन्तर्बहि
र्महः परममस्तु नः सहजमुद्विलासं सदा
चिदुच्छलननिर्भरं सकलकालमालम्बते
यदेकरसमुल्लसल्लवणखिल्यलीलायितम्।।१४।।
शुद्धआत्मानी अनुभूतिमां उत्कृष्ट चैतन्य ज प्रकाशे छे, ने आवी अनुभूति ज
आत्मानुं स्वरूप छे. माटे आवी अनुभूतिवडे अखंड चैतन्यतेज अमने सदा प्रकाशमान
हो. शुद्धस्वरूपना अनुभवथी बहार बीजुं कांई उपादेय नथी. आवो शुद्धअनुभव ते ज
उपादेय छे, तेमां ज आत्मा अखंडपणे प्रकाशे छे. विकल्पमां अखंडआत्मा प्रकाशतो
नथी. ईन्द्रियज्ञान पण खंडखंडरूप छे, तेमां आत्मा प्रकाशतो नथी, ईन्द्रियज्ञान अखंड
आत्माने अनुभवमां लई शकतुं नथी; ते तो आकुळतावाळुं छे, ते उपादेय नथी. जे
ज्ञान अंतरमां वळीने अतीन्द्रियपणे शुद्धचैतन्यवस्तुनो अनुभव करे ते ज उपादेय छे.
अनुभवमां आवतो आत्मा अतीन्द्रियस्वभावी छे, ते ईन्द्रियग्राही थतो नथी.
शुद्धनयरूप ज्ञानवडे आवा आत्मानी अनुभूति ते समस्त जिनशासन छे. ते
अनुभूतिमां जैनशासन छे, अनुभूतिथी जुदुं जैनशासन नथी; एटले रागादि भावो ते
जैनशासन नहि, ते जैनधर्म नहि, ते मोक्षमार्ग नहि, ते परभावो जैनशासनथी बहार,
मोक्षमार्गथी बहार; शुद्धआत्मानी अनुभूतिथी जे बहार ते बधुंय जैनशासनथी बहार,
जेने शुद्धआत्मानी अनुभूति