Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : ९ :
प्रतिकूळतामां आत्माने याद करजे–तारा सर्व समाधान थई जशे. शुद्ध आत्मतत्त्वनी
भावना ते ज कषायोने रोकवानो उपाय छे.
आत्मा तो सिद्ध भगवंतोनो कुटुंबी छे. हे जिनेश्वर! अमे तो आपना कूळना ने
आपनी जातिना छीए. आवा लक्षे हुं धर्मनी आराधना करवा जाग्यो, धर्मनो रंग
लाग्यो, तेमां हवे कदी भंग पडशे नहि, हवे अप्रतिहतभावथी अमे सिद्धदशामां
पहोचशुं. आवा सिद्ध सिवाय बीजी जात ते अमारी जात नहि, तीर्थंकरोनुं ने सिध्धोनुं
जे चैतन्य कूळ छे ते ज कूळना अमे छीए. तीर्थंकरोना अमे केडायती छीए,–ए अमारी
टेक छे. संसारमां कर्मवश जे जातिभेद छे जातिभेद अमारामां नथी; अरे चैतन्यनी
भावनामां जे लीन थाय ते जीव आ भवमां न पडे, एमां शुं आश्चर्य छे! जेनुं चित्त
आत्मामां नथी लागतुं ते ज संसारमां भ्रमण करे छे, पण जेनुं चित्त आत्मामां लाग्युं
तेने परभावनी उत्पत्ति न रही ने संसारभ्रमण न रह्युं. माटे हे जीव! गमे तेवा
प्रतिकूळ प्रसंगमांय तुं तारुं चित्त आत्मामां जोड. बहारमां धगधगता दागीनाथी
पांडवोनो देह भडभड सळगे छे त्यारे अंदर शीतळ चैतन्यमां चित्तने जोडीने केवळज्ञान
ने मोक्ष पामे छे; सुकुमारमुनि वगेरेना शरीरने शियाळ खाई जाय छे ते वखते पण
अंदर चैतन्यमां चित्तने जोडीने ते पोताना परम आनंदने अनुभवे छे. आनंदसमुद्र
आत्मा छे तेमां ज्यां उपयोग जोडयो त्यां दुःख केवुं? ने प्रतिकूळता केवी? आराधनामां
ज्यां विघ्न नथी त्यां कोई प्रतिकूळता छे ज नहि. साधकने जगतमां कांई प्रतिकूळता छे
ज नहि. प्रतिकूळता वखते ते आराधनाथी डगता नथी पण उलटी तेने आराधनानी
उग्रता थाय छे.
अरे, चैतन्यपिंड आत्माने आ देहमां जन्म धारण करवो ते शरम छे. हे जीव!
जो तुं भवभ्रमणथी भयभीत हो तो चैतन्यनी भावना कर, तेथी तारा शरमजनक
जन्मो छूटी जशे. कषाय पण शरम छे, तेनाथी पण भिन्न चैतन्यनी भावना कर.
कोई जीव तारा दोषो ग्रहण करे तोपण तुं क्रोधित न था. अरे, अज्ञानीओ तो
मोटामोटा धर्मात्माना पण दोष ग्रहण करे छे, केमके तेने दोष गमे छे तेथी ते दोषने
ग्रहण करे छे. अरे, तेणे मारा दोष ग्रहण कर्या तेमां मने शुं नुकशान थयुं? मारा गुण
तो कांई एणे लई लीधा नथी!–एम विचारी हे जीव! तुं गुस्सो न थवा दे ने तारा
चैतन्यनी मस्तीमां मस्त रहे. जगतमां बीजा जीव क्रोधादिथी दोषग्रहण करे तो तेमां
तारे शुं? जे करशे ते भोगवशे, तेमां तुं केम उदास थाय छे? जगतना पदार्थोने
प्रकाशवानो तारो स्वभाव छे. कोई शुभभाव करे, कोई अशुभ करे, कोई निंदा करे,
कोई प्रशंसा करे, तेथी