: भादरवो : आत्मधर्म : ११ :
परम वीतराग जैनधर्मना अनादिनिधन प्रवाहमां तीर्थंकरो अने संतोए
आत्महितना हेतुभूत अध्यात्मवाणीनो प्रवाह वहेवडाव्यो छे; तीर्थंकरो अने सन्तोनो
ए अध्यात्मसन्देश झीलीने अनेक जीवो पावन थया छे. गृहस्थ–धर्मात्माओए पण ए
अध्यात्मगंगाना पुनित प्रवाहने पोतानी अध्यात्मरसिकता वडे वहेतो राख्यो छे....ए
अध्यात्मरसना पानथी, संसारना संतप्त जीवो परम तृप्ति अनुभवे छे.
तीर्थंकरो अने मुनिओनी तो शी वात! तेओनुं तो जीवन स्वानुभववडे
अध्यात्म– रसथी ओतप्रोत बनेलुं छे; ते उपरांत जैनशासनमां अनेक धर्मात्मा–श्रावको
पण एवा पाकया छे के जेमनुं अध्यात्मजीवन अने अध्यात्मवाणी अनेक जिज्ञासुओने
अध्यात्मनी प्रेरणा जगाडे छे. एवा एक अध्यात्मविद्वान श्रीमान् पं. श्री
टोडरमल्लजीनो अने तेमनी लखेली रहस्यपूर्ण चिठ्ठिनो परिचय आत्मधर्मना गतांकमां
आपणे कर्यो. एवा ज एक बीजा विद्वान श्रीमान् पं. श्री बनारसीदासजीनो टूंक परिचय
अहीं आपीए छीए.
श्रीमान् पं. बनारसीदासजीए पोते ज ‘अर्धकथानक’ मां पोताना
जीवनवृत्तांतनुं आलेखन कर्युं छे; हिन्दीभाषाना कविओमां ‘आत्मकथा’ लखनारा तेओ
पहेला ज गणाय छे. तेमनी आत्मकथामांथी ज तेमना जीवननो संक्षिप्त परिचय अहीं
आपीए छीए. प्रतिकूळ जीवनमांथी पण अध्यात्मरसना प्रतापे केवुं उज्जवळ जीवन
बनी शके छे–तेनी आपणने आमांथी प्रेरणा मळे छे.
मध्यभारतमां रोहतकपुर पासे बिहोली गाम छे, त्यां राजपुतोनी वस्ती छे.
एकवार बिहोलीमां कोई जैनमुनि पधार्या, तेमना पवित्र चरित्रथी अने विद्वत्ताभरेला
उपदेशथी प्रभावित थईने त्यांना बधा राजपुतो जैनधर्मी थई गया, अने–
पहिरी माला मंत्रकी पायो कुल श्रीमाल,
थाप्यो गोत बिहोलिया बीहोली–रखपाल.
आ रीते नमस्कारमंत्रनी माळा पहेरीने बिहोलिया गोत्रनी जे स्थापना थई
तेमां अनुक्रमे मूलदासजी थया, तेओ राज्यना मोदी हता. सं. १६०२ मां तेमने
खरगसेन नामनो पुत्र थयो. ते ११ वर्षनो हतो त्यारे (सं. १६१३मां) तेना पितानो
देहांत थतां मोगलसरदारे तेमनुं घर खालसा कर्युं; आथी विधवा माता पोताना पुत्रने
लईने जोनपुर चाली गई, त्यां तेनुं पियर हतुं.