Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : भादरवो :
सं. १६२६मां खरगसेन आग्रा आवीने वेपार करवा लाग्या ने तेमनी पासे
सारूं धन एकठुं थयुं; फरी तेओ जोनपुर आव्या. मेरठनगरना सुरदासजीनी कन्या साथे
तेना लग्न थया. आज आपणा चरित्रनायकना माता–पिता. सं. १६३प मां तेमने एक
पुत्र थयो, पण ते मात्र आठदस दिवस ज जीवी शक््यो, थोडा दिवस पछी खरगसेन
पुत्रलाभनी ईच्छाथी रोहतकपुर एक सतीनी यात्रा करवा सहकुटुम्ब चाल्या, पण
रस्तामां चारोए तेमने लूंटी लीधा. आ प्रसंग उपर पं. बनारसीदासजी लखे छे के सती
पासे पुत्र मांगवा जतां रस्तामां उलटा लूंटाई गया; आवुं प्रगट देखवा छतां मूरख
लोको समजता नथी अने व्यर्थ देव–देवीनी मानता करे छे. खरगसेनजी फरीने पाछा सं.
१६४३ मां पुत्रलाभनी ईच्छाथी सतीनी यात्रा करवा गया. त्यांथी आव्या बाद थोडा
वखते तेमने पुत्र थयो; एनुं नाम विक्रम. आ विक्रम ए ज आपणा पं. बनारसीदासजी
(वि. सं. १६४३ ना महासुद अगिआरस ने रविवारे तेमनो जन्म थयो.)
बालक विक्रम ज्यारे छ महिनानो थयो त्यारे खरगसेनजी सकुटुंब पार्श्वनाथ
प्रभुनी यात्राए काशी गया. भावपूर्वक पूजन करीने बाळक विक्रमने प्रभुचरणमां
नमस्कार कराव्या; त्यारे त्यांना पूजारीए कपटथी कह्युं के पार्श्वप्रभुनो भक्त यक्ष मने
ध्यानमां आवीने कही गयो छे के पार्श्वप्रभुनी आ जन्मनगरीनुं जे नाम छे (बनारस)
ते ज नाम आ बाळकनुं राखवुं, तेथी ते चिरंजीवी थशे. आ उपरथी कुटुंबीजनोए ए
बाळकनुं बनारसीदास नाम राख्युं. पांचमा वर्षे तेने संग्रहणी रोग थयेलो, जेम तेम
करीने ते शांत थयो त्यां शीतळाए घेरो घाल्यो. आ रीते एक वर्ष सुधी बाळके अतीव
कष्ट भोगव्युं. सात वर्षनी वये शाळामां पांडे रूपचंदजी पासे विद्याभ्यास शरू थयो.
बेत्रण वर्षमां कुशळ थई गया.
लगभग चारसो वर्ष पहेलानां जे समयनो आ ईतिहास छे ते समये देशमां
मुसलमानोनुं राज्य हतुं ने बालविवाहनो घणो प्रचार हतो; ९ वर्षनी वये खेराबादना
कल्याणमलजी शेठनी कन्या साथे बालक बनारसीनी सगाई थई ने ११ वर्षनी वये
(सं. १६प४ ना माह सुद १२) विवाह थई गया. जे दिवसे नववधु घरमां आवी ते ज
दिवसे खरगसेनने त्यां एक पुत्रीनो जन्म थयो ने ते ज दिवसे तेनी वृद्ध नानी मरण
पामी. ए ज दिवसे एक ज घरमां त्रण प्रसंग बनतां पंडितजी लखे छे:–
यह संसार विडंबना देख प्रगट दुःख वेद
चतुर–चित्त त्यागी भये, मूढ न जाणे भेद.
सोळ वर्षनी युवावस्थामां तेमने कोढनो रोग थयो, ने शरीर ग्लानिजनक बनी
गयुं; ते रोग मांडमांड मटयो. युवावस्थामां दुराचारना संस्कारथी हजार चोपाई–दोहानी
एक शृंगारपोषक पोथी तेमणे बनावेली, पण पाछळथी सद्बुद्धि थतां ए पोथी पश्चा–