Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : १३ :
त्तापपूर्वक गोमती नदीमां फेंकी दीधी हती. सं. १६६० मां तेमने फरी पाछी मोटी बिमारी
थयेल, २१ लांघण बाद तेओ नीरोग थया.
सं. १६६१ मां (१८ वर्षनी वये) एक संन्यासी–बावाए बनारसीदासजीने
जाळमां फसाव्या, एक मंत्र आपीने एक वर्ष सुधी तेना जाप करवाथी रोज एक
सोनामहोर आंगणामां पडेली देखाशे–एम कह्युं, बनारसीदासजी एनी जाळमां फसाया
ने मंडया जाप जपवा. मांड मांड वर्ष पूरुं कर्युं ने सोनामहोरनी उत्कंठाथी आंगणुं
तपासवा लाग्या–पण कांई मळ्‌युं नहि. संन्यासीनी आ बनावटथी एमनी आंख
ऊघडी.
पण वळी पाछा एक बीजा जोगीए तेमने फसाव्या; एक शंख आपीने कह्युं के
आ सदाशिव छे, तेनी पूजाथी महा पापी पण शीघ्र मोक्ष पामे छे.–बनारसीदासजी
मूर्खताथी ए शंखनी पूजा करवा लाग्या. आ मुर्खाई संबंधमां तेओ लखे छे के–
शंखरूप शिव देव, महा शंख बनारसी,
दोउ मिले अबेब, साहिब सेवक एकसे.
सं. १६६१ मां हीरानंदजी ओसवाले शिखरजीनी यात्रानो संघ काढयो,
खरगसेनजी पण तेनी साथे यात्रा करवा चाल्या. ए वखते रेल्वे वगेरे न हती. तेथी
यात्रामां एकाद वर्ष वीती जतुं. संघ घणा दिवसे यात्रा करीने पाछो आव्यो त्यारे अनेक
लोको लूंटाई गया, अनेक बीमार थई गया ने अनेक मरी गया. खरगसेनजी पण
रोगथी पीडित थया ने मांड मांड जोनपुर घरे पहोंच्या.
खरगसेनजी शिखरजीनी यात्राए गया ते दरमियान पाछळथी
बनारसीदासजीने पार्श्वनाथजीनी (बनारसनी) यात्रानो विचार थयो, अने प्रतिज्ञा
करी के ज्यांसुधी यात्रा न करुं त्यां सुधी दूध–दहीं–घी–चावल–चणा–तेल वगेरे पदार्थनो
भोग नहीं करुं. आ प्रतिज्ञाने छ महिना वीती गया बाद कार्तिकी पूर्णिमाए घणा लोको
गंगास्नान माटे तथा जैनी लोको पार्श्वनाथ प्रभुनी यात्रा माटे बनारस तरफ चाल्या,
तेमनी साथे बनारसीदासजी पण कोईने पूछया विना बनारस चाल्या गया. त्यां
गंगास्नानपूर्वक भगवान पार्श्वनाथनी भावसहित पूजा करी अने साथे त्यां शंखापूजा
पण करता हता. यात्रा करीने, शंख साथे लईने हर्षपूर्वक तेओ घरे आव्या.
एकवार तेओ घरनी सीडी उपर बेठा हता, त्यां खबर सांभळ्‌या के अकबर
बादशाहनुं मृत्यु थयुं. ते सांभळतां ज आघातथी तेओ सीडी उपरथी नीचे पडी गया,
ने माथामां फूट पडी तेथी कपडां लोहीलूहाण थई गया. आ प्रसंग पछी एकान्तमां
बेठाबेठा एकवार तेने विचार आव्यो के–
जब मैं गिर्यो पड्यो मुरझाय, तब शिव कछुं नहिं करी शकाय.