Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो :
कुंदकुंदाचार्यदेव रचित समयसारनी जे टीका अमृतचंद्राचार्यदेवे करी छे अने
जे टीकाना अध्यात्मरसझरता कळशो उपर पं. श्री राजमल्लजीए
(बनारसीदासजीनी पूर्वे सोएक वर्ष पहेलां) अध्यात्मनी खूमारीथी भरपूर
कळशटीका रची छे, ते पंडित बनारसीदासजीने अत्यंत प्रिय हती; ते कळशटीका–
संबंधमां तेओ लखे छे के–
पांडे राजमल्ल जिनधर्मी समयसार नाटकके मर्मी,
तिन्हें गं्रथकी टीका कीनी बालबोध सुगम कर दीनी.
आ कळशटीका उपरथी आपणा कविराजे छंदबद्ध पद्यरूप नाटक–
समयसारनी रचना करी; सं. १६९३ ना आसो सुद १३ ने रविवारे ते पूर्ण थई.
ते वखते आग्रामां बादशाह शाहजहांनुं राज्य हतुं. पंडितजीए पंचावन वर्ष
सुधीनुं पोतानुं कथानक (जे अर्धकथानक कहेवाय छे ते) लख्युं छे. त्यारपछी
लोकवायका–अनुसार केटलाक प्रसंगोनो उल्लेख समयसार नाटकनी पीठिकामां छे.
पं. श्री बनारसीदासजीनी मुख्य रचना समयसार नाटक, ते उपरांत
बनारसीविलास, जिनेन्द्रदेवना १००८ नामोनी नाममाळा (सहस्र अठ्ठोतरी),
अर्धकथानक (आत्मकथा) अने परमार्थवचनिका तथा उपादान–निमित्तनी चिठ्ठि
तेमणे लखेल छे. पं. श्री बनारसीदासजीनुं जीवन पहेलां केवुं हतुं ने पछी
अध्यात्मरसवडे केवुं उज्वळ बन्युं ते आपणने तेमना जीवनचरित्रमां देखाय छे,
ने अध्यात्मरसमय उज्वळ जीवननी प्रेरणा आपे छे. जैनशासनमां भगवान
तीर्थंकरदेवथी मांडीने एक नानामां नाना सम्यग्द्रष्टिनुं जीवन पण उज्वळ,
प्रशंसनीय ने आराधनानी प्रेरणा देनारुं छे; ते धर्मजीवन धन्य छे.