अन्य भावमां आत्मानुं कर्तृत्व मानवुं ते अज्ञानीनो मोह छे. भेदज्ञानवडे
ज्ञान अने परभावने भिन्न जाणीने, जे परभावनुं कर्तृत्व छोडे छे ने
ज्ञानभावपणे परिणमे छे ते ज्ञानी छे.
छे.–अने ए ज्ञानभाव ज आत्मानुं खरुं कार्य छे.
शुं छे तेने तुं जाण. तारी चैतन्यवस्तुने जोवा माटे हजार सूर्य जेवा तारा ज्ञानचक्षुने
खोल. परनां कामनुं कुतूहल छोडीने चैतन्यवस्तुने जाणवानुं कुतूहल कर, अंतरमां
आनंदनो स्तंभ चैतन्यकंद छे, तेना अनुभवनी अपूर्वता छे. आवा आत्मानी जेने
अनुभूति होय तेने ज बारअंगनी लब्धि ऊघडी शके छे. बारअंगनी लब्धि शुद्धात्मानी
अनुभूति वगर होय नहि. दिव्य– ध्वनिमांथी नीकळेला जे बारअंग तेमां पण भगवाने
शुद्धआत्मानी अनुभूति करवानुं कह्युं छे, ने तेने जे मोक्षमार्ग कह्यो छे.
शीतळ–शीतळ चैतन्यबिंब पड्युं छे, जेनी छायामां परम शांति ने निराकुळतानुं वेदन
छे. ज्ञानस्वरूप आत्मा तो आवा कार्यने करे ते तेनुं खरुं कार्य छे.
मानीने, तेनो ते कर्ता थाय छे. आ कार्य अज्ञानीनुं छे. धर्मात्मानी द्रष्टि शुद्ध स्वद्रव्य
उपर छे, ते द्रष्टिमां तेने निर्मळभावनी उत्पत्ति थाय छे, ने निर्मळभाव ज धर्मीनुं कार्य
छे. अहीं तो साचो आत्मा ज तेने कह्यो के जे निर्मळ ज्ञानभावने करे. रागादि
अशुद्धताने करे ते आत्मानुं साचुं स्वरूप नथी. स्वभाव जेवो छे तेवो श्रद्धा–ज्ञानमां
लेतां तेना जेवी निर्मळ परिणति