Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : भादरवो :
अज्ञानीना बधाय परिणाम अज्ञानमय छे; ज्ञानीना बधाय परिणाम ज्ञानमय
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते निजस्वरूपने ओळखीने आवुं ज्ञानकार्य करे, ते तेनुं
प्रश्न:– ज्ञानीनेय राग तो होय छे?
उत्तर:– राग अने निर्मळ ज्ञानपरिणाम बंने एकसाथे होवा छतां ज्ञानी ते काळे
राग साथे तन्मयपणे नथी उपज्या. पण रागथी भिन्न ज्ञानपरिणाममां ज तन्मयपणे
उपज्या छे, माटे ज्ञानी ते काळे ज्ञानना ज कर्ता, छे, रागना कर्ता नथी. तेना ज्ञानमां
तन्मयपणे राग नथी वर्ततो, रागनुं ज्ञान थयुं ते ज्ञान साथे तन्मयपणुं छे. आ रीते
तेने ज्ञानपरिणाम ज्ञानजातिपणे ज वर्ते छे; ज्ञानपरिणाम रागपणे थता नथी माटे
ज्ञानी ज्ञानभावनो ज कर्ता छे. आवुं स्वरूप समजवुं ते अपूर्व भेदज्ञान छे.