Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : १९ :
(कलशटीका–प्रवचन)
सन्तो आत्माने साधवानी एवी मजानी
वात संभळावे छे के मोहनिद्रानुं झोलुं ऊडी जाय
ने स्वानुभवनो उल्लास जागे. स्वानुभवनो
उल्लास थतां परभावनो उल्लास छूटी जाय ने
आत्मनश्चिन्तयैवालं मेचकामेचकत्वयोः।
दर्शनज्ञानचारित्रैः साध्यसिद्धिर्न चान्यथाः।।१९।।
शुद्धतानो विकल्प के अशुद्धतानो विकल्प, तेना वडे कांई साध्यनी सिद्धि थती
नथी, एटले के स्वानुभव थतो नथी, मोक्षमार्ग थतो नथी. कई क्रियाथी मोक्षमार्ग
थाय? तो कहे छे के ‘स्वानुभूत्या चकासते’ एटले स्वानुभूतिनी क्रियाथी आत्मा
शुद्धपणे अनुभवाय छे ते ज मोक्षमार्ग छे, ते ज शुद्धात्मारूप साध्यनी सिद्धिनो उपाय
छे.
बहारनी बीजी क्रियाओ तो दूर रहो, अंदरमां आत्माना स्वरूपना सराग–
विचारनी जे क्रिया, तेना वडे पण धर्म नथी. समस्त विभावने मटाडवानो जेनो
स्वभाव छे–एवा शुद्धात्माना अनुभवनी प्राप्ति तेना विकल्प वडे थती नथी. अरे,
आवा अनुभवनी वात सांभळतांय झोलां ऊडी जाय; अनादिनुं मोहनिद्रानुं झोलुं तेने
स्वानुभव वडे उडाडवानी आ वात छे. स्वानुभवनो उल्लास करतां आत्मा जागी ऊठे.
ने परभावनो उल्लास छूटी जाय, परिणति अंतरमां वळतां अपूर्व स्वानुभव प्रगटे.
जुओ, आ आत्माने साधवानी रीत! साध्य जे शुद्धआत्मा तेने साधवानी
एटले तेनो अनुभव करवानी रीत आ छे के अंतर्मुखपरिणति वडे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र प्रगट करवा. एनाथी ज शुद्ध आत्मानी सिद्धि छे, बीजा कोई प्रकारथी
शुद्धआत्माने साधी शकतो नथी.