Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : भादरवो :
श्रुतज्ञानवडे मात्र विचार कर्या करे के आत्मा आ रीते अनेकरूप छे, आ
रीते एकरूप छे, आ रीते अशुद्ध छे, आ रीते शुद्ध छे–तो तेमां घणाय विकल्पो ऊठे
छे पण आत्माना स्वरूपनो अनुभव थतो नथी. अतीन्द्रिय आनंदना वेदनसहित
जे सम्यग्दर्शन थाय छे ते कांई एवा विकल्परूप विचारोवडे थतुं नथी.
जिज्ञासुदशामां एवा विचारोनी धारा होय छे, पण पछी ते विकल्पथी पण आघो
खसीने ज्ञानने अंतरमां लई जाय–त्यारे ज निर्विकल्प अनुभूतिमां भगवान
आत्मा अतीन्द्रियआनंदसहित प्रगट थाय छे.–आनुं नाम सम्यक्त्व; ने आ
आत्माने साधवानी रीत.
प्रश्न:– श्रुतना विचार ने विकल्प ते अनुभव नथी, तो अनुभव शुं छे? केवी
दशाने तमे अनुभव कहो छो?
उत्तर:– प्रत्यक्षरूपे वस्तुना स्वादनुं वेदन थाय तेनुं नाम अनुभव छे. आत्माना
विचार ते अनुभव नथी, पण तेना स्वरूपना आनंदनुं सीधुं वेदन ते अनुभव छे.–
आवुं वेदन करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय.
विचार अर्थात् भेदना विकल्प ते कांई वस्तुस्वरूप नथी, तेमां कांई वस्तुनो
स्वाद नथी, तेमां तो आकुळतानो स्वाद छे; चैतन्यनो स्वाद तो शांत–अतीन्द्रिय–
आनंदथी भरेलो छे, तेमां आकुळता नथी.–आवो स्वाद अनुभवमां सीधो आवे छे.
जेम गरमीना दिवसोमां मोढामां ठंडा आईसक्रीमनो लचको चूसे ने ठंडो–मीडो स्वाद
आस्वादे, तेम स्वानुभवमां चैतन्यना शीतळ चोसलानो अतीन्द्रिय शांत आनंदस्वाद
सीधेसीधो धर्मीने आस्वादमां आवे छे. आईसक्रीमनो स्वाद तो ईन्द्रियगम्य छे ने
अनुभवमां तो लोकोत्तर अतीन्द्रिय स्वाद छे,–ए स्वाद कोई द्रष्टांतथी बतावी न
शकाय.
‘स्वानुभव’ मां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे समाय छे, ने तेना वडे ज
मोक्षनी सिद्धि थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए त्रणेय रागमां नथी. पण
स्वानुभवमां छे;– आवा कारणना सेवनथी मोक्षकार्य सधाय छे. सम्यग्दर्शन ते
शुद्धस्वरूपना अवलोकनरूप छे, तेमां राग नथी; सम्यग्ज्ञान ते शुद्धस्वरूपने
साक्षात् जाणवारूप छे, तेमां विकल्प नथी; सम्यक्चारित्र ते शुद्धस्वरूपमां
आचरणरूप छे–तेमां पण राग नथी. आवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षनां
कारण छे ने ए त्रणे पण स्वानुभव वडे ज थाय छे, माटे स्वानुभव वडे ज मोक्षनी
सिद्धि छे.