Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : भादरवो :
अनुभूतिथी बहार बीजो
मार्ग नथी....नथी.....नथी
(कलशटीका–प्रवचन)
शुद्ध आत्मानी स्वानुभूतिरूप जे मोक्षमार्ग छे तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र त्रणे समाई जाय छे, एना वडे ज साध्यरूप शुद्धआत्मानी सिद्धि थाय छे,
एना सिवाय बीजा कोई पण उपायथी साध्यनी सिद्धि थती नथी. संतो आवा
मार्ग वडे आत्माने साधतां साधतां, जगतने निःशंकपणे तेनी रीत बतावे छे के
आत्माने साधवानो आ ज मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी....नथी.
कथमपि समुपात्तत्रित्वमप्येकताया
अपतितमिदमात्म ज्योतिरूद्गच्छदच्छम्।
सततमनुभवामोऽनं तचैतन्यचिह्नं
न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि।।२०।।
व्यवहारे सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र एवुं त्रणपणुं अंगीकार कर्युं
होवा छतां आत्मज्योतिए पोतानुं एकपणुं छोडयुं नथी; अनंतचैतन्यचिह्नवाळी आ
आत्मज्योतिने आचार्यदेव अनुभवे छे; पोते निःशंक कहे छे के अमे आवी
आत्मज्योतिने सतत अनुभवीए छीए. केमके एना अनुभवथी ज साध्यनी सिद्धि छे.
अनुभूतिथी बहार बीजा कोई मार्गे साध्यनी सिद्धि चोक्कस नथी...नथी
शुद्धात्मानो अनुभव ते ज मोक्षमार्ग छे. तेना वडे ज साध्यनी सिद्धि छे, एना
सिवाय बीजा कोई प्रकारे साध्यनी सिद्धि थती नथी.–आम मोक्षमार्गनो नियम
बताव्यो.
पछी कहे छे के अमे सततपणे आवा चैतन्यप्रकाशने अनुभवीए छीए,–एटले
पोतानुं उदाहरण आपीने बीजा मुमुक्षुओने पण तेनी प्रेरणा आपी के हे मुमुक्षुओ! तमे
पण आवा स्वभावने ज अनुभवो. अमे आवा अनुभवथी मोक्षमार्गने साधी रह्या
छीए ने तमे पण आवो ज अनुभव करो. एना सिवाय कोई अन्य प्रकारे साध्यनी
सिद्धि नथी...ज नथी.