Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : २३ :
जुओ, आ मोक्षमार्ग साधवानी स्पष्ट रीत. एक ज रीत छे; बीजी कोई रीत
नथी. कई रीत? के शुद्ध चैतन्यज्योतिरूप आत्मानो अनुभव करवो ते ज मोक्षने
साधवानी रीत छे. अनुभव सिवाय बीजा कोई वडे (रागवडे, व्यवहारवडे) मोक्षमार्ग
सधातो नथी.
शुद्ध चैतन्यप्रकाशी आत्मा छे, ते राग साथे तन्मय नथी, एटले तेनो अनुभव
रागथी जुदो छे, आत्मानी जे अनुभूति मोक्षनी साधक छे ते तो निर्मळ–निर्मळ
चैतन्य–भावपणे ज परिणमे छे, ते रागपणे परिणमती नथी, तेनुं परिणमन
चैतन्यतेजथी भरेलुं छे, ते परिणमनमां कांई मलिनता आवी जती नथी.–आवी दशानुं
नाम मोक्षमार्ग छे.
अनुभवमां आवती चैतन्यज्योति अनंत चैतन्यचिह्नरूप छे; स्वानुभूतिरूप
ज्ञान पण अति–बहु सामर्थ्यवाळुं छे, आखा चैतन्यस्वभावने स्वानुभवमां लई
लेवानी महान ताकात एनामां ज छे, एना सिवाय रागमां के ईन्द्रियज्ञानमां एवी
ताकात नथी.–माटे आवा ज्ञानवडे स्वानुभवथी शुद्धात्मानो प्रत्यक्ष आस्वाद लेवो–ते
साध्यनी सिद्धिनो उपाय छे.
आशंका: –आपे तो स्वानुभव उपर ज घणुं जोर आपीने, तेनो ज द्रढपणे
वारंवार उपदेश आप्यो, फरी फरीने एनो ज महिमा कर्यो,–तेनुं शुं कारण छे?
उत्तर:– भाई, ए स्वानुभवथी ज साध्यनी सिद्धि थाय छे– ‘न खलु न खलु
यस्मादन्यथा साध्यसिद्धि–एना सिवाय बीजा कोई उपायथी साध्यसिद्धि थती नथी.–
माटे स्वानुभव ए ज मुख्य वस्तु छे. जेवुं शुद्धस्वरूप छे तेवो ज तेनो शुद्धअनुभव
करवाथी ते शुद्धपणे प्रगटे छे; आत्माना मोक्षनी सिद्धिनो आ ज उपाय छे.–बीजो उपाय
नथी,–ए निश्चय छे. माटे मोक्षार्थी जीवो सतत् आवा अनुभवनो ज उद्यम करो.
एक शुद्धअनुभव ने बीजो राग–ए बे भेगां थईने कर्मना नाशनुं कारण थाय–
एम अज्ञानीनी मान्यता छे. अहीं स्पष्ट कहे छे के एक शुद्धात्मअनुभव सिवाय बीजुं
कोई कर्मना नाशनुं कारण नथी–नथी–नथी.
* संतो शुद्धात्माना अनुभवनो उपदेश आपे छे केमके तेनाथी ज मोक्षमार्ग थाय
छे.
* जीवनमां हमणां ज आवो अनुभव करवा जेवो छे, अनुभव जीवन ए ज
साचुं जीवन छे.
* हे जीव! अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद स्वानुभवमां छे, बीजे क््यांय ए आनंद
नथी.