Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : २प :
भव्य? समस्त पऱद्रव्योथी निरालंबी थईने तारा स्वद्रव्यनुं एकनुं ज अवलंबन ले.
परना अवलंबने स्वरूपनी साधना थती नथी; स्वना ज अवलंबने स्वरूपनी साधना
थाय छे.
(१७प) लक्ष्मीनी गति
* पुण्य होय त्यां सुधी, लक्ष्मी खरचवाथी खूटती नथी.
* अने पुण्य खूटतां, गमे तेटला प्रयत्न करे तोपण लक्ष्मी रहेती नथी.
* अधु्रव एवी लक्ष्मीनी सौथी उत्तम गति ए छे के देव गुरुशास्त्रनी सेवाना
सत्कार्यमां तेनो उपयोग करवो.
(१७६) तुं धननो मालिक के रखोपियो?
जेने पुण्योदयथी कंईक धन मळ्‌युं छे, परंतु जो देव–गुरु–धर्मनी सेवा, दान वगेरे
सत्कार्योमां ते धनने ते नथी वापरी शकतो अने मात्र कुटुंब–स्त्री–पुत्रादिने माटे ज धन
भेगुं करीने पाप बांधे छे, तो ते जीव खरेखर धननो मालिक नथी पण धननो दास छे,
रखोपियो छे. भाई, तें पूर्वे कांईक पुण्यभाव कर्या तेथी तने आ लक्ष्मी वगेरे मळ्‌युं तो
हवे आत्महितना निमित्त तरफ वलण करीने, धनादिनी तीव्र तृष्णा छोड ने देव–गुरु–
धर्मना सत्कार्योमां तेनो उपयोग कर. कुटुंब वगेरे माटे लक्ष्मी संघरी राखवानो भाव
तेमां तो तने पाप बंधाय छे; ने देव–गुरु–धर्म माटे लक्ष्मी वापरवानो उत्साह तेमां
धर्मनो प्रेम पोषाय छे, ने पुण्य बंधाय छे. माटे तारा परिणामनो विवेक करीने वर्त.
(१७७) पुण्यना मार्ग अनेक, धर्मनो मार्ग एक
जगतमां पुण्यना मार्ग घणा छे, पण धर्मनो मार्ग एक ज छे के निजस्वभावनो
आश्रय करवो. जेटला शुभरागना प्रकारो छे तेटला पुण्यना प्रकारो छे, धर्म तो सर्व
राग– रहित वीतरागभावरूप एक ज प्रकारनो छे. सम्यग्दर्शनथी शरू करीने ठेठ
केवळज्ञान सुधी जेटला वीतरागताना अंशो छे तेटलो ज धर्म छे, जेटला रागना अंशो
(दशमा गुणस्थान सुधी) छे ते धर्म नथी. आम धर्ममार्ग ने पुण्यमार्ग भिन्नभिन्न छे.
पुण्यनो मार्ग ते कांई धर्मनो मार्ग नथी.
(१७८) जाणवानो स्वभाव आत्मानो छे, ईन्द्रियोनो नहि
पांच ईन्द्रियोद्वारा तो ते–ते ईन्द्रियना एक विषयनुं ज ज्ञान थाय छे, पण
खरेखर जाणनारो आत्मा छे ते पांच ईन्द्रियोथी जुदो रहीने पांचे ईन्द्रियोना विषयने
जाणे छे.
आंख देखे छे एम नथी थतुं पण आंख द्वारा हुं देख छुं–एम थाय छे, ते एम
सूचवे छे के जाणनारो आंखथी जुदो छे.
जीभ रसने जाणे छे एम नथी थतुं पण जीभ द्वारा हुं रसने जाणुं छुं एम थाय