Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 31 of 45

background image
: २८ : आत्मधर्म : भादरवो :
आचार्यदेवे स्पष्ट कह्युं छे के आत्मा एकला अनुमान वडे के एकला ईन्द्रिय–मन वडे
जणातो नथी एटले एकला परोक्ष वडे जणातो नथी, ईन्द्रियजन्य मति–श्रुतज्ञानने
सांव्यवहारिका प्रत्यक्ष कह्युं छे ते परने जाणवानी अपेक्षाए, स्वने जाणवामां तो ते
ज्ञान ईन्द्रियातीत स्वानुभवप्रत्यक्ष छे. आ स्वानुभवप्रत्यक्षपणुं अध्यात्मशैलीमां छे,
एटले आगमनी शैलीमां प्रत्यक्ष–परोक्षना जे भेदो आवे तेमां तेनुं कथन न आवे.
समयसारमां कहे छे के हुं मारा समस्त निजवैभवथी शुद्धात्मा देखाडुं छुं ते
स्वानुभवप्रत्यक्षथी प्रमाण करजो. हवे त्यां श्रोताओ तो मति–श्रुतज्ञानवाळा ज छे ने
तेमने ज मति–श्रुतज्ञान वडे स्वानुभवप्रत्यक्ष करवानुं कह्युं छे. जो स्वानुभवमां मति–
धर्मात्माए आवो अनुभव करतां पहेलां आगमद्वारा तथा अनुमान वगेरे द्वारा
आत्मानुं यथार्थ स्वरूप नक्की कर्युं छे. पछी तेमां परिणाम लीन करीने स्वानुभव करे छे.
आगममां, अरिहंतना आत्मानुं उदाहरण आपीने आत्मानो शुद्ध स्वभाव
देखाडयो छे. अरिहंतनो आत्मा द्रव्यथी–गुणथी ने पर्यायथी जेवो शुद्ध छे तेवो ज
आ आत्मानो स्वभाव छे, अरिहंत जेवो सर्वज्ञस्वभाव आ आत्मामां भर्यो छे;
अरिहंतना आत्मामां शुभराग वगेरे विकार नथी तेम शुभराग आ आत्मानो पण
स्वभाव नथी. आगममां शुभरागने आत्मानो स्वभाव नथी कह्यो पण परभाव
कह्यो छे, तेने अनात्मा अने आस्रव कह्यो छे, एम अनेक प्रकारे आगमना ज्ञानथी
आत्मस्वरूपनो निर्णय करवो जोईए. वळी अनुमानना विचारथी पण वस्तुस्वरूप
नक्की करे. जेम के–
हुं आत्मा छुं...मारामां ज्ञान छे.
ज्यां ज्यां ज्ञान छे त्यां त्यां आत्मा छे, जेमके सिद्ध भगवान.
ज्यां ज्यां आत्मा नथी त्यां त्यां ज्ञान पण नथी. जेमके अचेतन शरीर.
वळी, ज्यां ज्यां ज्ञान नथी त्यां त्यां आत्मा पण नथी. अने
ज्यां ज्यां आत्मा छे त्यां त्यां ज्ञान पण छे.
आ रीते आत्माने अने ज्ञानने परस्पर व्याप्तिपणुं छे, एटले एक होय त्यां
बीजुंं होय ज, ने एक न होय त्यां बीजुं पण न होय, आवा परस्पर
अविनाभावपणाने ‘समव्याप्ति’ कहेवाय छे. ‘शरीर होय त्यां आत्मा होय’–एम साचुं
अनुमान थई शकतुं नथी, केमके सिद्धभगवानने शरीर न होवा छतां आत्मा छे, अने
मृतककलेवरमां