Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : ३३ :
प्रश्न:– आ समजीने पछी शुं करवुं? २४ कलाकनो कार्यक्रम शुं?
उत्तर:– भाई, धर्मात्माने चोवीसे कलाकनो आ ज कार्यक्रम छे के सम्यग्दर्शन–
सम्यग्दर्शन थया पछी धर्मीने उपयोग क््यारेक स्वमां होय छे ने क््यारेक परमां
सम्यग्दर्शन थाय एटले ते जीव सदाय निर्विकल्प–अनुभूतिमां ज रहे–एवुं नथी.
स्वानुभूति ते ज्ञाननी स्वउपयोगरूप पर्याय छे; सम्यग्दर्शनने ते उपयोगरूप
स्वानुभूति साथे विषमव्याप्ति छे, एटले के एक पक्ष तरफनी व्याप्ति छे. जेम
केवळदर्शन अने केवळज्ञानने, अथवा तो आत्माने अने ज्ञानने, तो समव्याप्ति छे–
एटले के ज्यां बेमांथी एक होय त्यां बीजुं पण होय ज; अने एक न होय त्यां बीजुं
पण न ज होय.–एम बंनेने परस्पर अविनाभावीपणुं छे, एने समव्याप्ति कहे छे.
पण सम्यग्दर्शनने अने निर्विकल्प स्वानुभूतिने एवुं समव्याप्तिपणुं नथी, पण
विषमव्याप्ति (एक पक्ष तरफनुं अविनाभावपणुं) छे; एटले के–