Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : भादरवो :
* ज्यां निर्विकल्पअनुभूति होय त्यां सम्यग्दर्शन होय ज.–अने ज्यां सम्यग्दर्शन
* ज्यां सम्यग्दर्शन होय त्यां अनुभूति सदा होय ज, अने ज्यां अनुभूति न
*ज्यां सम्यग्दर्शन होय त्यां निर्विकल्पस्वानुभूति वर्तती होय के न पण वर्तती
* सम्यग्दर्शन प्रगटवाना काळे तो निर्विकल्प स्वानुभूति होय ज ए नियम छे.
साधकने आ स्वानुभवमां मति–श्रुतज्ञान छे : ते अपेक्षाए तेने भले परोक्ष
* निर्विकल्प स्वानुभवने प्रत्यक्ष कह्यो तथा तेमां आनंदनी खास विशेषता कही,
आम तेनो घणो महिमा कर्यो. तो आवो स्वानुभव क््या गुणस्थाने थाय? कोई मोटा
मुनिओने ज आवो स्वानुभव थतो हशे, के गृहस्थनेय थतो हशे? एवा प्रश्न ऊठे तो
तेना समाधान माटे आगामी अंक वांचशोजी.