Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : ३प :
(४)
तत्त्वरसिक जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग; पू. गुरुदेव पासे
तत्त्वचर्चामां थयेल प्रश्नोत्तरमांथी तेमज शास्त्रोमांथी आ
विभाग तैयार करवामां आवे छे. हवेथी आ विभागमां
नियमितपणे दश–प्रश्न–दश उत्तर आपवामां आवशे.
(४१) प्रश्न:– असंख्य प्रकारना परभावो–ते बधायथी बचवा शुं करवुं? एक
परभावथी बचीए त्यां बीजो परभाव घूसी जाय छे,–तो शुं करवुं?
उत्तर:– स्वभावमां प्रवेश करतां बधाय परभावो एक साथे छूटी जाय छे. आ आत्मा
एवो चैतन्यतेजनो पूंज छे के एनुं स्फुरणमात्र ज समस्त परभावोनी ईन्द्रजाळने
(विकल्पतरंगोने) तत्क्षण भगाडी मूके छे. स्वभावना दरबारमां परभावनो प्रवेश
नथी. स्वभावमां आव्या विना, परभावना लक्षे परभावोथी बची शकाय नहि एटले,
एक साथे समस्त परभावोथी बचवानो उपाय ए छे के त्यांथी उपयोगने पाछो वाळीने
स्वभावमां उपयोग मूकवो.
*
उत्तर:– सम्यग्दर्शन थाय ने स्वानुभवनी कणिका जागे त्यारे ज मोक्षमार्ग
साचो; एना विना मोक्षमार्ग खोटो, एटले के मोक्षमार्ग नहि. अंतरद्रष्टि वगर
अज्ञानी शुभराग करे अने ते व्यवहाररत्नत्रयादिना शुभरागने ज मोक्षमार्ग मानी
ल्ये, पण ए कांई मोक्षमार्ग नथी, ए तो मात्र भ्रम छे. अरे! सम्यग्दर्शन अने
स्वानुभव वगर, एकला शुभरागने मोक्षमार्ग मानवो ते तो वीतराग जैनधर्मनी
विराधना छे. जिनभगवानने एवो मोक्षमार्ग कह्यो नथी. जिनभगवाने तो
सम्यग्दर्शन–