परभावथी बचीए त्यां बीजो परभाव घूसी जाय छे,–तो शुं करवुं?
उत्तर:– स्वभावमां प्रवेश करतां बधाय परभावो एक साथे छूटी जाय छे. आ आत्मा
एवो चैतन्यतेजनो पूंज छे के एनुं स्फुरणमात्र ज समस्त परभावोनी ईन्द्रजाळने
(विकल्पतरंगोने) तत्क्षण भगाडी मूके छे. स्वभावना दरबारमां परभावनो प्रवेश
नथी. स्वभावमां आव्या विना, परभावना लक्षे परभावोथी बची शकाय नहि एटले,
एक साथे समस्त परभावोथी बचवानो उपाय ए छे के त्यांथी उपयोगने पाछो वाळीने
स्वभावमां उपयोग मूकवो.
अज्ञानी शुभराग करे अने ते व्यवहाररत्नत्रयादिना शुभरागने ज मोक्षमार्ग मानी
ल्ये, पण ए कांई मोक्षमार्ग नथी, ए तो मात्र भ्रम छे. अरे! सम्यग्दर्शन अने
स्वानुभव वगर, एकला शुभरागने मोक्षमार्ग मानवो ते तो वीतराग जैनधर्मनी
विराधना छे. जिनभगवानने एवो मोक्षमार्ग कह्यो नथी. जिनभगवाने तो
सम्यग्दर्शन–