Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : भादरवो :
उत्तर:– जेम राजमार्गनी सीधी सडकमां वच्चे कांटा–कांकरा न होय, तेम मोक्षनो
आ सीधो–स्पष्ट राजमार्ग स्वानुभवरूप छे, तेमां वच्चे रागनी रुचिरूप कांटा–कांकरा
नथी. (मिथ्यात्वादि शल्य के रागरूप कांकरा नथी) संतोए शुद्धपरिणतिरूप राजमार्गे
मोक्षने साध्यो छे, ने ए ज मार्ग जगतने दर्शाव्यो छे.
*
उत्तर:– केडीमार्ग ते कांई राजमार्गथी विरुद्ध तो न ज होय. राजमार्ग जतो होय
पूर्व तरफ ने केडिमार्ग जाय पश्चिममां एवुं तो न बने, भले केडिमार्ग होय पण तेनी
दिशा तो राजमार्ग तरफनी ज होय. तेम सम्यग्दर्शन–ज्ञान उपरांत शुद्धोपयोगी
चारित्रदशा ते तो मोक्षनो सीधो–राजमार्ग छे; अने एवी चारित्रदशा वगरना जे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान छे ते हजी अपूर्ण–मोक्षमार्ग होवाथी तेने केडिमार्ग कहेवाय, ते एकाद
बे भवमां मोक्षमार्ग पूरो करीने मोक्षने साधशे. पूरो मोक्षमार्ग के अधूरो मोक्षमार्ग–पण
ए बंनेनी दिशा तो स्वभाव तरफनी ज छे, राग तरफनी एक्केयनी दिशा नथी. रागादि
भावो तो मोक्षमार्गरूपी विपरीत छे एटले के बंधमार्ग छे. ए बंधमार्गनी केडिए कांई
मोक्षमां न पहोंचाय.
*
उत्तर:– मृत्यु थतां एक गतिमांथी बीजी गतिमां शरीरधारण करवा माटे जीवनुं
गमन थाय तेने विग्रहगति कहे छे. विग्रह एटले शरीर, तेने ग्रहण करवा माटेनी गति
ते विग्रहगति छे. विग्रहगतिनो वधुमां वधु काळ त्रण समय छे. विग्रहगति वखते
ज्ञाननो के दर्शननो एक्केय उपयोग होतो नथी, त्यां मात्र लब्धरूप होय छे.
*
(४६) प्रश्न:– विग्रहगति वखते रस्तामां क््या क््या गुणस्थान ने कया कया ज्ञान
संभवे?