नथी. (मिथ्यात्वादि शल्य के रागरूप कांकरा नथी) संतोए शुद्धपरिणतिरूप राजमार्गे
मोक्षने साध्यो छे, ने ए ज मार्ग जगतने दर्शाव्यो छे.
दिशा तो राजमार्ग तरफनी ज होय. तेम सम्यग्दर्शन–ज्ञान उपरांत शुद्धोपयोगी
चारित्रदशा ते तो मोक्षनो सीधो–राजमार्ग छे; अने एवी चारित्रदशा वगरना जे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान छे ते हजी अपूर्ण–मोक्षमार्ग होवाथी तेने केडिमार्ग कहेवाय, ते एकाद
बे भवमां मोक्षमार्ग पूरो करीने मोक्षने साधशे. पूरो मोक्षमार्ग के अधूरो मोक्षमार्ग–पण
ए बंनेनी दिशा तो स्वभाव तरफनी ज छे, राग तरफनी एक्केयनी दिशा नथी. रागादि
भावो तो मोक्षमार्गरूपी विपरीत छे एटले के बंधमार्ग छे. ए बंधमार्गनी केडिए कांई
मोक्षमां न पहोंचाय.
ते विग्रहगति छे. विग्रहगतिनो वधुमां वधु काळ त्रण समय छे. विग्रहगति वखते
ज्ञाननो के दर्शननो एक्केय उपयोग होतो नथी, त्यां मात्र लब्धरूप होय छे.
संभवे?