Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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द स ल क्ष ण ध र्म
१. उत्तमक्षमां जहां मन होई, अंतर बाहर शत्रु न कोई;
२. उत्तम मार्दव विनय प्रकाशे, नाना भेद ज्ञान सब भासे.
३. उत्तम आर्जव कपट मिटावे, दुर्गति त्यागी सुगति उपजावे;
४. उत्तम शौच लोभपरिहारी संतोषी गुन–रतनभंडारी.
प. उत्तम सत्य वचन मुख बोले, सो प्राणी संसार न डोले;
६. उत्तम संयम पाले ज्ञाता, नरभव सफल करे लै साता.
७. उत्तम तप निरवांछी पाले, सो नर करमशत्रुको टालै.
८. उत्तम त्याग करे जो कोई, ता जीवको–सुर–शिवसुख होई.
९. उत्तम आकिंचनव्रत धारे, परम समाधिदशा विस्तारे;
१०. उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे, नर–सुर सहित मुक्तिफल पावे.
करे करमकी निर्जरा, भावपिंजरा विनाशि;
अजर अमरपदको लहे, ‘द्यानत’ सुखकी राशि.