Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : ३ :
क्यांय भागे...अरे, आघेथी एनी गंध आवे त्यां पण ससलां भयभीत थईने
भागवा मांडे; तेम चैतन्यसिंह स्वानुभवनी त्राड मारतो ज्यां जाग्यो त्यां ससलां
जेवां कर्मो तो क्यांय भागे छे, अने ए चैतन्यनी रुचिना संस्कार ज्यां पाडया त्यां ते
संस्कारनी गंधथी पण मिथ्यात्वादि कर्मो ढीलाढफ थईने भागवा मांडया. तुं तो
सर्वज्ञस्वभावी आत्मा, सर्वज्ञ जेवी तारी जात, सर्वज्ञ भगवाननो पूरो वारसो ले
एवी तारी ताकात,–आवा स्वभावने साधवा जे जाग्यो ते कोई परिग्रह के उपसर्गथी
डगे नहि, कोई प्रतिकूळताना गंज पण तेने हटावी शके नहि. एनी आराधना कोई
तोडी शके नहि. पूर्वे बंधायेल अशुभ कर्म तेने उदयमां आवे तो ते नाशने माटे ज छे.
सिंहनी सामे ससलुं आवे तो ते मरवा माटे ज आव्युं छे, तेम आराधक जीवने
पूर्वकर्म उदयमां आव्युं तो ते मरवा माटे आव्युं छे; धर्मी तो पोताना निर्विकल्प
आत्मतत्त्वनी भावनामां ज वर्ते छे. अहा, आत्मस्वभावनी भावनानुं मोटुं बळ छे,
तेनी अज्ञानीने खबर नथी.
अहीं शिखामण आपतां कहे छे के हे जीव! कोई तने कठोर–कर्कश–आकरा
निंदाना शब्दो कहे, तारा उपर दोष नांखे, ने ताराथी ते सहन न थतुं होय तो कषाय
दूर करवा तुं शीघ्र तारा परमानंदस्वरूपनी भावना कर, तेनुं चिंतन कर. ते सर्वोत्कृष्ट
चैतन्यनुं चिन्तन करतां वेंत ज कषायो विरमी जशे. जगत तारी निंदा करे तेथी तुं तारा
परमतत्त्वनी भावना न छोडीश. जेम सीताजीए रामने सन्देश कहेवडाव्यो के
लोकनिंदाना भयथी मने तो छोडी पण कदी लोकनिंदाना भयथी जिनधर्मने न छोडशो.
तेम हे मुमुक्षु! लोक तारी निंदा करे तेथी तुं तारी शांति छोडीश नहि, परमात्मतत्त्वनी
भावनाथी डगीने कषाय थवा दईश नहि, तारा परमात्मतत्त्वमां कोई निंदानो प्रवेश
नथी, ए परम तत्त्वनी तुं उग्र भावना करजे.
कषायोने जीतवानो उपाय शुं? एक ज के अंदरमां परमात्मतत्त्वनी भावना;
जेम दरिद्रता वखते कोई माणसे पचीसहजारनुं ऋण कर्युं, पछी ते माणस
करोडो–अबजोनो स्वामी थयो, ने पोतानुं ऋण चूकववा सामा माणसने शोधतो होय,
त्यां ते माणस सहेजे घरे आवी चडे, तो ते हर्षपूर्वक तेनुं ऋण चूकवीने ऋणमूक्त थाय
छे. तेम पूर्वे अज्ञानदशामां कोई कर्मो बंधाई गया, हवे धर्मी मुमुक्षु चैतन्यसंपत्तिनो