Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : भादरवो :
स्वामी थयो ने कर्मबंधनथी छूटवा मांगे छे, त्यां ते कर्मो एनी मेळे उदयमां आवीने
खरवा मांडया, तो धर्मी पोताना स्वभावमां रहीने ते कर्मोने निर्जरावी नांखे छे ने
कर्ममुक्त थाय छे. प्रतिकूळता प्रसंगे धर्मी घेराता तो नथी पण ऊलटुं प्रयत्ननी उग्रता
वडे विशेष निर्जरा करे छे. अरे, मारा स्वभावमां प्रतिकूळता केवी? अज्ञानी तो
प्रतिकूळता देखीने स्वभावने भूली जाय छे ने रोतल थईने बेसे छे; पण धर्मी तो सामो
पडकार करीने, स्वभावनी शूरवीरतावडे कर्मोने तोडी नांखे छे. ज्ञानी शूरवीर होय छे,
ते स्वभावना धैर्यने छोडता नथी.
अरे, प्रतिकूळता घणी आवी–शुं करवुं? तो कहे छे के एना तरफथी लक्ष फेरवीने,
आ स्वभाव तरफ लक्ष जोड. स्वभावनी गूफामां गरी जा....तेमां परम शांति छे.
प्रतिकूळतानी सामे जोईने बेसी रहीश तो खेद थशे, पण स्वभावनी सामे लक्ष करतां
गमे तेवी प्रतिकूळतामांय धैर्य ने शांति रहेशे. माटे हे मुमुक्षु! तुं सदैव तारा
परमात्मतत्त्वनी भावनामां तत्पर रहे.
साची कमाणी
दया–दान–पूजा–शील पूंजी सो अजानपने,
जितनो हंस तुं अनादि कालमें कमायेगो;
तेरे बिन विवेककी कमाई रहे न हाथ,
भेदज्ञान विना एक समयमें गमायगो.
अमल अखंडित स्वरूप शुद्ध चिदानंद,
याके वणजमांही एक समय जो रमायगो;
मेरी समझ मान जीव आपने प्रताप आप,
एक समयकी कमाई तुं अनंतकाळ खायगो.
हे जीव! हे चैतन्य हंसला! अज्ञानभावे अनादिकाळथी तुं दया–दान–पूजा–शील
वगेरेनी जे पूंजी कमाईश ते विवेक वगरनी पूंजी तारा हाथमां नहि रहे; भेदज्ञान वगर
एक क्षणमां ते बधी कमाणी तुं गूमावी दईश.
अने, जो तुं तारा अमल–अखंड शुद्ध चिदानंद स्वरूपना वेपारमां तारो उपयोग
एक समय पण रमावीश, तो तेना प्रतापथी एक समयमां एटली कमाणी थशे के अनंत
काळ सुधी खाईश छतां ते नहि खूटे. माटे तुं मारी शिखामण मान, ने चिदानंदस्वरूपमां
तारा उपयोगने जोड.