कर. निःसन्देह थईने, स्वदेहमां ज शुद्धआत्मा वसे छे–तेनो निश्चय करीने, तेनुं ध्यान
कर.–एथी शीघ्र तारो मोह तूटशे. ने परम आनंद तारामां ज अनुभवाशे.
एकता तूटी जाय. पण गुण–गुणीनी एकता कदी तूटे नहि. जेम आत्माना गुणो परना
आश्रये कदी न होय, तेम गुणनी पर्याय पण परना आश्रये कदी न होय, एवो स्वभाव
छे. ‘कारणसमयसार’ एटले रत्नत्रयस्वरूप जे शुद्धआत्मा तेनी भावना करवाथी ज
केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप कार्यसमयसार प्रगटे छे.
तेनो उपदेश आपे छे. शिष्ये पूछयुं हतुं के हे स्वामी! मोह शीघ्र तूटे एवो उपदेश मने
आपो. बीजानुं मारे कांई प्रयोजन नथी, मारा शुद्धआत्माने हुं जाणुं ने मारो मोह जल्दी
तूटे एवो उपदेश मने आपो.
छे तेवो ज परमात्मा अहीं आ देहमां वसे छे, जेवा परमात्मा छे तेवो ज परमार्थे हुं छुं,
एम निःसन्देह निश्चय करीने हे जीव! तारा आत्माने तुं ध्याव. पर साथे संबंध छोड ने
स्व साथे संबंध कर, एटले के परिणतिने अंतरमां वाळ; आ रीते परिणतिने अंतरमां
वाळतां ज तारो मोह तूटी जशे, ने परम आनंदमय आत्मा तारामां ज तने देखाशे.
भावना एक क्षण पण न कर, शुद्ध आत्मानी भावना निरंतर कर. ‘जेवी भावना तेवुं
भवन’ एटले शुद्धात्मानी भावनाथी शुद्धतारूप परिणमन थाय छे.