: ६ : आत्मधर्म : भादरवो :
भावना एटले शुं? भावना एटले विकल्प नहि, पण तेनी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान ने
तेमां लीनतानो फरी फरी अभ्यास तेनुं नाम भावना छे. शुद्धआत्मानी भावना जेने
निरन्तर होय तेनी परिणति तेमां वळ्या वगर रहे नहि.
अरे प्रभु! तारामां अपार ताकात भरी छे, तेनो हकार लावीने पुरुषार्थने
ऊछाळ. तारी चैतन्यशक्तिना एक टंकारे मोहनो नाश थई जाय एवी तारी ताकात छे.
तारी स्वशक्तिनो भरोसो कर, ने तेमां उपयोगनी एकाग्रता कर.–एमां तारे कोई
बीजानी अपेक्षानथी.
रे जीव! आ काया अशुद्ध–मलिन छे पण अंदर रहेलो आत्मा अशुद्ध नथी, ते
तो पवित्र ज्ञान–दर्शननो पूंज छे. जेम रंगीन वस्त्र पहेरवाथी माणस कांई तेवो थई
जतो नथी. तेम देहनी मलिनताथी आत्मा कांई मलिन थई गयो नथी. वस्त्र फाटतां
माणस कांई मरी जतो नथी तेम देहरूपी वस्त्र नष्ट थतां आत्मा कांई नष्ट थतो नथी.–
आम विचारीने हे जीव! देहादिथी भिन्न आत्माने जाण. अहा, आमां महान प्रयत्न छे.
अहा, जे बुद्धि अंतरमां वळीने आखा चैतन्यपहाडने धारण करे–एनी
ताकातनी शी वात? जेम कुंदकुंदस्वामीनी अपार ताकात माटे जयसेनाचार्य कहे छे के–
जयउ रिसि पउमणंदी जेण महातच्चपाहुडसेलो
बुद्धि सिरेणद्धरिओ समप्पिओ भव्वलोयस्स।।
ते ऋषि पद्मनंदीनो जय हो–के जेमणे महातत्त्वथी भरेल प्राभृतरूपी पर्वत
बुद्धिरूपी शिर वडे उपाडीने भव्य जीवोने समर्पित कर्यो छे.
तेम अंतरमां अनंत चैतन्यशक्तिथी भरेलो जे शुद्धात्मारूपी मोटो पर्वत, तेने
अंतर्मुख थईने जे ज्ञाने अनुभवमां लीधो ते ज्ञानना महिमानी शी वात? ते ज्ञानना
सामर्थ्य पासे मोह टकी शके नहि. आवुं अनुभवज्ञान चोथा गुणस्थानेथी होय छे. एना
वगर मोक्षमार्ग शरू थतो नथी.
आत्मा अने देह अत्यंत जुदा छे. देह अने देहनी क्रियाओ सदाय अजीव ज छे,
तेमां कदी जीवनो धर्म नथी, तेमज ते जीवना धर्मनुं कारण पण थतुं नथी. जीवना बधा
धर्मो जीवमां छे, जीवनो कोई धर्म अजीवमां नथी. माटे हे जीव! देहना संबंधने तुं तारो
न देख, तारा आत्माने देहथी भिन्न ज देख.
देहथी आत्मानी भिन्नतानुं भान क््यारे थाय? के ज्ञानने अंतरमां वाळीने
ज्यारे अतीन्द्रिय चैतन्यनो स्पर्श करे त्यारे देहादिमां एकत्वबुद्धि छूटे, ने त्यारे ज
खरेखर देहथी भिन्न आत्माने जाण्यो कहेवाय. श्वास लेवाय, वचन बोलाय ए बधी
क्रियाओ देह साथे संबंधवाळी छे, तेने जे पोतानी माने छे ते देहने ज आत्मा माने छे.
अरे, अतीन्द्रिय चैतन्यवस्तु ए कांई ईन्द्रियज्ञाननो विषय थाय तेवी नथी. आत्मानी
क्रिया कई? ज्ञान– क्रिया ते आत्मानी क्रिया छे. आवी क्रिया वडे जे आत्माने देहभिन्न
अनुभवे छे ते ज सर्वज्ञपरमात्मानी परमार्थस्तुति करी शके छे.