Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : आत्मधर्म : ७ :
आत्मानुं स्वरूप शुद्ध उपयोगरूप छे. शुद्धस्वरूप आत्मा कथंचित् उपयोगरूप छे
ने कथंचित् रागरूप छे–एम द्विधापणुं नथी; आत्मानुं शुद्ध पद सर्वथा उपयोगरूप छे, ने
रागादिरूप सर्वथा नथी, जरापण नथी. उपाधिरूप रागादिभावो तो क्षणिक मायाजाळ
जेवा छे, क्षणमां तेनो लोप थई जाय छे. पण आ चैतन्यमय निजपद छे ते तो स्थायि
छे, ते कांई मायाजाळनी जेम क्षणिक नथी. हवे आवा स्थायि निजपदने हे जीव! तुं देख,
एटले के अत्यारे ज अनुभवमां ले.
प्रश्न:– मनुष्यपणुं तो दुर्लभ छे, तो ते आत्मा नथी–एम केम कहो छो?
उत्तर:– वैराग्यना उपदेशमां एम कहेवाय के भाई, आ मनुष्यपणुं पामीने तुं
आत्मानुं हित करी ले, केमके मनुष्यपणुं दुर्लभ छे. अहीं शुद्धात्मानुं स्वरूप बतावतां कहे
छे के मनुष्यपणुं ते आत्मा नथी, उपयोगपणुं ते ज आत्मा छे. मनुष्यपणुं दुर्लभ छे ते
वात साची पण तेथी कांई ते आत्मानुं स्वरूप नथी. ‘हुं मनुष्य छुं’ एम मनुष्यपणाना
भावमां ऊभा रहीने कांई आत्मा नथी सधातो, पण उपयोगस्वरूपमां आवीने आत्मा
सधाय छे,–उपयोगस्वरूपे आत्माने अनुभवे तो ज ते सधाय छे.
आ आत्मा चैतन्यस्वरूप छे. पर्यायमां जे शुभ–अशुभ भाव करे, तेना वडे जे
पुण्य–पाप कर्म बंधाय, ने तेना फळमां जे सुख–दुःख मळे–ते बधायथी (छए बोलथी)
आत्मानुं स्वरूप जुदुं छे. अज्ञानीओ अनादि काळथी ए संयोगने अने संयोगी
परभावोना स्वादने ज पोतानुं स्वरूप समजीने आस्वादे छे, पण ए सर्व अनुभव
जूठो छे, एटले तेमां आत्माना स्वरूपनो साचो स्वाद नथी. आत्मानो स्वाद तो ए
बधाथी पार शुद्ध– चैतन्यरसथी भरपूर छे. ते बतावीने आचार्यदेव भव्यजीवोने
संबोधन करे छे के अरे जीवो! पाछा वळो...पाछा वळो....ए रागादि विभावमां तमारुं
पद नथी, तमारुं पद तो आ चैतन्यमय अत्यंत शुद्ध छे, आ तरफ आवो...आ तरफ
आवो. रागादि अशुद्धपर्यायने आत्मा मानीने तमे ते तरफ दोडी रह्या छो पण ते मार्गे
मत जाओ...मत जाओ केमके ए मार्ग तमारो नथी, ए स्वरूप तमारुं नथी. आ शुद्ध
चैतन्यपणे अनुभवाय छे ते ज तमारुं पद छे, ते ज तमारो मार्ग छे, माटे आ तरफ
आवो रे.....आ तरफ आवो (जुओ चित्र)
जुओ तो खरा, संतो केवी करुणा करीने निजपद बतावे छे. परभावो तरफ
वेगथी दोडता प्राणीओने वात्सल्यथी पुकार करीने पाछा वाळे छे के अरे जीवो! ए
मार्गेथी पाछा वळे. आ तरफ अंतर स्वभावमां आवो. जेम मार्ग भूलेला माणसने
कोई सज्जन हाकल करीने सत्यमार्गे पाछो वाळे, तेम अहीं सत्य स्वरूपनो मार्ग
भूलीने परभावना वेगे चडेला जीवोने संतो हाकल करीने सत्यमार्गे पाछा वाळे छे.
जेवुं शुद्धस्वरूप छे तेवुं देखाडीने ते तरफ बोलावे छे के अरे जीवो! आ तरफ आवो.
अमारा समस्त वैभवथी आत्मानुं शुद्धपद अमे देखाडीए छीए तेने अनुभवमां ल्यो.
रागनो अनुभव छोडो.