: ८ : आत्मधर्म : आसो :
निर्विकल्प अनुभव
निर्विकल्प अनुभवथी ज साधकदशानी शरूआत थाय छे. ए
दशानो आनंद विकल्पथी पण न चिंतवी शकाय एवो छे.
निर्विकल्प अनुभव वखते ज्ञान अतीन्द्रिय थईने
प्रत्यक्षस्वानुभव करे छे, ए वखतना आनंदनी खास विशेषता
छे, एनो अचिंत्य महिमा छे. स्वानुभवनो आवो महिमा
सांभळतां कोईने एम थाय के आवो अनुभव तो कोई मोटा
मोटा मुनिओने ज थतो हशे! अमारा जेवा गृहस्थने आवो
अनुभव थतो हशे के नहि? तेनुं समाधान करतां अहीं बताव्युं छे
के एवो निर्विकल्प स्वानुभव चोथा गुणस्थानथी ज थाय छे,
एवो अनुभव थाय त्यारे ज चोथुं गुणस्थान थाय छे. आवो
अनुभव थया पछी गुणस्थानअनुसार परिणामनी मग्नता
वधती जाय छे. आवो स्वानुभव करवानी तैयारीवाळा जीवनी
दशा केवी होय ते पण आमां बताव्युं छे. जीवे शुद्धात्माना
चिंतननो अभ्यास करवो जोईए. अनुभवना काळे श्रावकने मुनि
समान गण्यो छे. संसारमां गमे तेवा कलेश प्रसंगो के
प्रतिकूळताना प्रसंगो आवे, पण ज्यां चैतन्यना ध्याननी स्फूरणा
थई त्यां ते बधाय कलेशो क््यांय भागी जाय छे. चिदानंद हंसलानुं
स्मरण करतां ज दुनियाना कलेशो दूर भागे छे. चैतन्यना
चिन्तनमां एकली आंनदनी ज धारा वहे छे. अनुभवी जीवनी
अंदरनी दशा कोई ओर होय छे.
प्रश्न:– एवो अनुभव कया गुणस्थानमां कह्यो छे?
समाधान:– चोथा गुणस्थानथी ज थाय छे. परंतु चोथा गुणस्थाने तो घणा
काळना अंतराले थाय छे, अने उपरना गुणस्थाने शीघ्र शीघ्र थाय छे.
चोथा गुणस्थाननी शरूआत ज आवा निर्विकल्प स्वानुभवपूर्वक थाय छे.
सम्यग्दर्शन कहो, चोथुं गुणस्थान कहो के धर्मनी शरूआत कहो ते आवा स्वानुभव
वगर थती नथी. स्वानुभवने प्रत्यक्ष कह्यो, तेमां अतीन्द्रिय वचनातीत आनंद कह्यो,
तेमां कोई विकल्प नथी एम कह्युं, तेथी कोईने प्रश्न ऊठे के आवो ऊंचो –अतीन्द्रिय,
प्रत्यक्ष स्वानुभव कोने थतो हशे?–तो कहे छे के आवो अनुभव चोथा गुणस्थानथी ज
थाय छे. आवी निर्विकल्प आनंददशा गृहस्थपणामां रहेला सम्यग्द्रष्टिने पण मति–
श्रुतज्ञानवडे थाय छे.