Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : आत्मधर्म : ९ :
चोथा गुणस्थाने विशेष–विशेषकाळनां अंतरे कोई कोईवार आवो अनुभव थाय छे.
पहेली वार ज्यारे चोथुं गुणस्थान प्रगट्युं त्यारे तो निर्विकल्पअनुभव थयो ज हतो,
पण पछी फरीने एवो अनुभव अमुक विशेषकाळना अंतरे थाय छे ने पछी उपर–
उपरना गुणस्थाने तेवो अनुभव वारंवार थाय छे. पांचमा गुणस्थाने चोथा करतां
अल्प अल्पकाळना अंतरे अनुभव थाय छे; (चोथा गुणस्थानवाळा कोई जीवने
कोईकवार तुरत ज एवो अनुभव थाय ते जुदी वात छे.) अने छठ्ठा–सातमा
गुणस्थानवर्ती मुनिने तो वारंवार अंतर्मुहूर्तमां ज नियमथी विकल्प तूटीने स्वानुभव
थया ज करे छे. सम्यग्द्रष्टिने चोथा गुणस्थाने वधुमां वधु केटला अंतरे स्वानुभव थाय–
ए संबंधी कोई चोक्कस माप जाणवामां आवतुं नथी छठ्ठासातमा गुणस्थानवर्ती मुनिने
माटे तो नियम छे के अंतर्मुहूर्तमां निर्विकल्प उपयोग थाय ज; नहितर मुनिदशा ज न
टके. मुनिदशामां कदी एम न बने के लांबा काळसुधी निर्विकल्पअनुभव न आवे ने
बाह्यप्रवृत्तिमां (सविकल्पदशामां) ज रह्या करे. त्यां तो अंतर्मुहूर्तमां नियमथी
निर्विकल्पध्यान थाय ज छे. मुनिदशामां कोई जीव भले लाखो–करोडो वर्षो रहे अने ते
दरमियान छठ्ठुं–सातमुं गुणस्थान वारंवार अंतर्मुहूर्तमां आव्या करे, ए रीते
समुच्चयपणे तेने छठ्ठा गुणस्थाननो काळ भले लाखो–करोडो वर्षो थई जाय, पण
एकसाथे अंतर्मुहूर्तथी विशेष काळ छठ्ठुं गुणस्थान रही शके ज नहीं. छठ्ठा गुणस्थाननो
काळ ज अतर्मुहूर्तथी वधु नथी, पछी लांबो वखत ऊंघवानी तो वात ज शी? भगवाने
छठ्ठा गुणस्थाननो जे उत्कृष्टकाळ कह्यो छे ते उत्कृष्टकाळ पण एवा जीवने ज होय छे के
जे त्यांथी पाछो मिथ्यात्वमां जवानो होय. बीजा जीवोने एवो उत्कृष्टकाळ होतो नथी,
तेने तो तेथी ओछा काळमां विकल्प तूटीने सातमुं गुणस्थान आवी जाय छे. मुनिओ
वारंवार निर्विकल्परस पीए छे.
अहो, निर्विकल्पता ते तो अमृत छे.
बधा मुनिओने सविकल्प वखते छठ्ठुं ने क्षणमां निर्विकल्पध्यान थतां सातमुं
गुणस्थान थाय छे. जेम सम्यग्दर्शन निर्विकल्प–स्वानुभवपूर्वक प्रगटे छे तेम मुनिदशा
पण निर्विकल्पध्यानमां ज प्रगटे छे,–पहेलां ध्यानमां सातमुं गुणस्थान प्रगटे ने पछी
विकल्प ऊठतां छठ्ठे आवे. मुनिने तो वारंवार निर्विकल्पध्यान थाय छे. ए तो
केवळज्ञानना एकदम नजीकना पाडोशी छे. अहा, वारंवार शुद्धोपयोगना आनंदमां
झूलता ए मुनिनी अंर्तदशानी शी वात! अरे, सम्यग्द्रष्टि–श्रावकने पण ध्यान वखते
तो मुनि जेवो गण्यो छे. हुं श्रावक छुं के मुनि छुं–एवो कोई विकल्प ज एने नथी, एने
तो ध्यान वखते आनंदना वेदनमां ज लीनता छे. चोथा गुणस्थाने आवो अनुभव
कोईकवार थाय छे, पछी जेम जेम भूमिका वधती जाय छे. तेम तेम काळ अपेक्षाए
वारंवार थाय छे ने भाव अपेक्षाए लीनता वधती जाय छे.