Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : आसो :
चोथा गुणस्थाने स्वानुभव लांबा काळना अंतरे थवानुं कह्युं अने उपरना
गुणस्थाने ते शीघ्र शीघ्र थवानुं कह्युं; आ रीते गुणस्थान–अनुसार मात्र काळना
अंतरनी ज अनुभवमां विशेषता छे के बीजी कोई विशेषता छे? तो कहे छे के
परिणामोनी लीनतामां पण विशेषता छे. स्वानुभवनी जात तो बधा गुणस्थानोमां
एक छे, चैतन्यस्वभावमां ज बधायनो उपयोग लागेलो छे पण तेमां परिणामनी
मग्नता गुणस्थानअनुसार वधती जाय छे. सातमा गुणस्थाने स्वानुभवमां जेवी
लीनता छे तेवी तीव्र लीनता चोथा गुणस्थाने नथी; ए रीते निर्विकल्पता बंनेने होवा
छतां परिणामनी मग्नतामां विशेषता छे. जेम कोई बे पुरुषो समानक्रिया करता होय,–
भगवाननुं नाम लेता होय, स्नान करता होय के भोजनादि करता होय, बंनेना
परिणाम तेमां लागेला होय छतां परिणामनी एकाग्रतामां बंनेने फेर होय छे, कोईना
परिणाम तेमां मंदपणे लागेला होय ने कोईना तीव्रपणे लागेला होय; त्यां बंनेनो
उपयोग तो एक ज कार्यमां लागेलो छे पण एकना परिणाम ते कार्यमां मंदपणे वर्ते छे
ने बीजाना परिणाम तेमां तीव्रपणे वर्ते छे; तेम चोथा गुणस्थाने निर्विकल्पता होय ने
सातमा गुणस्थाने निर्विकल्पता होय,–त्यां ते बंनेनो उपयोग तो आत्माने विषे
अनुभवमां ज लागेलो छे, परंतु चोथा करतां सातमा गुणस्थाने स्वरूपमां परिणामनी
मग्नता घणी छे; अंदर अबुद्धिपूर्वकनो राग घणो मंद छे. चोथा गुणस्थाने स्वानुभव
वखते पण अंदर अबुद्धिपूर्वक (भले मंद) त्रण कषाय चोकडी विद्यमान छे, अने
सातमा गुणस्थाने मात्र एक संज्वलन कषायचोकडी ज बाकी छे. स्वानुभवमां
परिणामोनी लीनता जेम जेम वधती जाय छे तेम तेम कषायोनो अभाव थतो जाय छे.
आ प्रकारे स्वानुभवनी गुणस्थानअनुसार विशेषता जाणवी. जेम जेम
गुणस्थान वधतुं जाय तेम तेम कषायो घटता जाय ने स्वरूपमां लीनता वधती जाय.
धर्मीने गुणस्थान अनुसार जेटली शुद्धी थईने जेटली वीतरागता थई तेटली शुद्धी ने
वीतरागता तो पर तरफना उपयोग वखते पण टकी रहे छे ने तेटलुं तो बंधन तेने थतुं
ज नथी. चोथा गुणस्थाने निर्विकल्पध्यानमां होय तोपण त्यां अनंतानुबंधी सिवायना
त्रणे कषायनुं अस्तित्व छे, ने छठ्ठा गुणस्थाने शुभविकल्पमां वर्तता होय तोपण त्यां
अप्रत्याख्यानावरण के प्रत्याख्यानावरण कषाय नथी, मात्र संज्वलन कषाय छे; एटले
स्वानुभूतिमां न होय तेथी तेने बीजा करतां वधु कषायो होय–एम नथी. पण एटलुं
खरुं के एक ज भूमिकावाळो जीव ते सविकल्पदशामां होय तेना करतां निर्विकल्पदशा
वखते तेने कषायो घणा ज मंद थई जाय छे. चोथागुणस्थाने स्त्रीपुत्रादिवाळा श्रावकने,
अरे! आठ वर्षनी बालिकाने के तीर्यंचने पण ए निर्विकल्पदशा वखते बुद्धिपूर्वकना
बधा रागद्वेष छूटी गया होय छे, मात्र चैतन्यगोळो–आनंदना सागरथी ऊल्लसतो–
देहथी