: आसो : आत्मधर्म : १प :
बहिर्मुख अवलोकनरूप मोहथी आ संसार छे, ते अंतर्मुख अवलोकनवडे क्षणमां
आ रीते मंगलपूर्वक परमात्मप्रकाश ग्रंथ पूर्ण थयो.
आ परमात्मप्रकाश–गं्रथनी टीकानुं व्याख्यान जाणीने भव्य जीवोए केवी
परमात्मप्रकाशनुं व्याख्यान जाणीने भव्यजीवोए शुं करवुं? तो कहे छे के शुद्ध
सहजशुद्ध ज्ञानानन्द एकस्वभावोहं’–हुं सहज शुद्ध ज्ञानानंदएकस्वभाव छुं.
‘निर्विकल्पोहं’ निर्विकल्प छुं. वच्चे विकल्प आवे ते हुं नहि, हुं निर्विकल्प छुं.
उदासीनोहं–हुं उदासीन छुं. जगतथी निरपेक्ष, जगतथी जुदो हुं मारा
स्वभावमां वर्तुं छुं. उत्कृष्ट एवुं मारूं चैतन्यस्वरूप ते ज मारूं आसन छे, तेमां ज मारो
वास छे.
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