Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : आत्मधर्म : १९ :
कर; ते स्वभावनी भावना वडे पर्यायनो दोष टळी जशे ने ने शुद्धता खीली जशे,
पर्यायना जराक दोष आडे आखा निर्दोष स्वभावने भूल्यो तेथी तुं भवमां भटक््यो,
पण पर्यायना दोषने मुख्य न करतां ते दोषथी जुदा शुद्धस्वभावने देख, ने तेनी ज
भावना कर, तो पर्यायमां पण तेनुं स्वसंवेदन थशे ने दोष नहि रहे.
मारो आत्मा अने जगतना बधा आत्माओ पण आवा शुद्धस्वभावथी भरेला
छे; बीजा आत्माने पण क्षणिक दोष जेटलो न देख पण तेने शुद्धस्वभावना पिंडरूप
देख. बधाय आत्माने शुद्धस्वभावपणे देखवा–तेमां पोतानी शुद्धात्मभावनानुं जोर छे.
बधा आत्माने द्रव्यद्रष्टिथी शुद्धपणे देखे त्यां कोना उपर राग–द्वेष–थाय? क््यांय न
थाय. एटले आ भावनामां परिणति रागद्वेषथी छूटीने अंर्तस्वभावमां वळे छे ने
वीतरागता थाय छे.
विकार ते हुं, अल्पज्ञ ते हुं, क्रोधी हुं, रोगी हुं, दुःखी हुं–एवी भावना न भाववी,
हुं तो निर्दोष शुद्ध परमस्वभावी आत्मा, हुं सर्वज्ञतानो पूंज, हुं क्रोधादि रहित शांत, हुं
शरीर रहित, हुं परम आनंदमय–एम उत्तम स्वभावनी भावना निरंतर भाववी.
समयसारमां जयसेनाचार्यनी टीकामां पण शास्त्रना तात्पर्य तरीके आवी ज भावना
करवानुं कह्युं छे; ए ज भव्य जीवोनुं निरंतर कर्तव्य छे, ने ए मंगळरूप छे.
आत्मधर्म
आ अंकनी साथे आत्मधर्म–मासिकनुं २२मुं
वर्ष पुरुं थाय छे. आगामी अंकथी २३मुं वर्ष
शरू थशे. नवा वर्षनुं लवाजम (चार रूपीआ)
वेलासर मोकलीने व्यवस्थामां सहकार आपवा
विनंति छे. लवाजम वेलासर मोकलवामां
आपनी जराक तकलीफ संस्थाना अने राष्ट्रनी
सरकारी कचेरीओ उपरना कामना दबाणने
ओछुं करवामां सहायरूप थशे. लवाजम
मोकलवानुं सरनामुं:–
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)