: आसो : आत्मधर्म : २१ :
पण, धीर ने उदार एवी सम्यग्ज्ञानज्योति ज्ञानने अने क्रोधादिने अत्यंत जुदा
जाणे छे, परभावना अंशमात्रने ज्ञानमां प्रवेशवा देती नथी. आवी ज्ञानज्योति
मंगळरूप छे. आ ज्ञानज्योति स्वकार्यने बराबर जाणे छे, पण परभावरूप कार्यने ते
जरापण करती नथी. ए ज्ञानज्योति जाणनशील छे, ने परभावनी मेटनशील छे.
मिथ्यात्वजनित जे कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति छे तेने ज्ञानज्योति सर्व प्रकारे अत्यंत दूर करे छे.
हजी तो आत्मा कर्ता ने जड तेनुं कार्य, शरीर अने कर्मने आत्मा करे–एम पर
साथे आत्माने कर्ताकर्मपणुं माने छे तेने तो जड–चेतननी भिन्नतानुंय भान नथी, एवा
जीवो तो अज्ञानअंधकारमां पडेला छे, भिन्नभिन्न वस्तुने तेओ देखी शकता नथी.
सर्वज्ञ परमात्माए जे वस्तुस्वरूप जोयुं अने उपदेश्युं तेनो संत उपदेश करे छे के
हे जीव! चिद्रूपशक्ति तारा आत्मामां भरेली–विद्यमान छे ते ज प्रगट थाय छे. दरेक
आत्मा सदाय ज्ञानशक्तिथी परिपूर्ण छे. पण ते स्वभावनो महिमा लावीने तेने
अनुभवमां ल्ये त्यारे आत्मा निजस्वरूपनो अनुभवनशील थाय, अने त्यारे जीव–
कर्मनी एकत्वबुद्धि छूटे, एटले मिथ्यात्व छूटे ने ज्ञानज्योति प्रकाशमान थाय. आवुं जे
ज्ञान उदय पाम्युं ते ज्ञान मिथ्यात्वादि परपरिणतिने उखेडी नाखे छे, अने भेदना
अनुभवरूप समस्त विकल्पजाळने तोडी पाडे छे.
एक द्रव्यमां तो परिणामी अने परिणाम एवा भेद पाडीने उपचारथी
कर्ताकर्मपणुं कहेवाय छे, एक वस्तुमां भेद पाडीने कर्ता–कर्मपणुं कह्युं माटे तेने उपचार
कह्यो; पण तेवी रीते पर द्रव्य साथे तो उपचारथी पण आत्माने कर्ताकर्मपणुं नथी, केमके
बंनेने एक वस्तुपणुं नथी.
कर्ता–कर्मपणुं त्यां ज होय के ज्यां व्याप्य–व्यापकपणुं होय.
व्याप्य–व्यापकपणुं तेमने ज होय के जेमने एकवस्तुपणुं होय.
भिन्न वस्तुओमां व्याप्यव्यापकपणुं के कर्ताकर्मपणुं कदी न होय.
अहीं तो एक वस्तुमांय कर्ताने कर्म एवा बे भेद पाडवा ते उपचार छे, त्यां पर
साथे कर्ताकर्मनी शी वात?
ज्ञानस्वरूप एवो हुं कर्ता ने क्रोधादि मारुं कार्य, एवी जे पोतामां ज्ञान ने
क्रोधादि वच्चेनी एकत्वबुद्धिरूप कर्ताकर्मनी बुद्धि ते पण ज्यां मिथ्यात्व छे, त्यां बहारना
कार्योना कर्तृत्वनी तो शी वात? जीव ज्यां ज्ञानी थयो के तरत तेने ए कर्ताकर्मनी
मिथ्याबुद्धि टळी, ने परभावनो अकर्ता थईने ज्ञानभावपणे परिणम्यो; झळझळतो
भेदज्ञानसूर्य तेना आत्मामां ऊग्यो.
भेदज्ञानरूप सूर्य महा बळवान छे, विकल्पोनो तेने सहारो नथी, ते ज्ञानसूर्य