: २२ : आत्मधर्म : आसो :
निजप्रकाशद्वारा कर्तृत्वना मिथ्यात्वअंधकारने छेदी नांखे छे. रागने तो ते भेदनार छे,
तो राग तेनो सहायक केम होय?
मोक्षनुं कारण भेदज्ञान छे.
बंधनुं कारण भेदज्ञाननो अभाव, एटले के परभावमां एकत्वबुद्धिनो सद्भाव
ज छे, एटले क्रोधादि साथे कर्ताकर्मनी बुद्धिरूप मिथ्यात्व ज बंधनुं मूळकारण छे.
हवे मोक्षना कारणरूप भेदज्ञान केम थाय? ने भेदज्ञानीना विचारो केवा होय?
ते बतावे छे, हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा, मारा स्वरूपमां ज व्यापनार छुं, ने पर चीज साथे
मारे कांई संबंध नथी. ‘ज्ञानमात्र भाव हुं छु’ एम स्वरूप विचारीने ते तरफ झूकवाथी
परभावोथी भिन्नतारूप भेदज्ञान थाय छे.
एक वस्तुमां कर्ता अने कर्म एवा बे भेद पाडवा ते पण ज्यां शुद्धद्रष्टिमां नथी
पालवतुं, त्यां एक वस्तुने अत्यंत भिन्न बीजी वस्तु साथे संबंध बताववो ए तो
क््यांथी पालवे? पर साथे कर्ताकर्मनी बुद्धिवाळो अज्ञानी पोताना भिन्न तत्त्वने कदी
अनुभवी शके नहि; ने अंदर गुण–पर्यायना भेद पाडीने तेना विकल्पमां रोकाय तो
त्यांसुधी पण आत्मवस्तु अनुभवमां आवती नथी. जेना विचार ज भेदज्ञानथी ऊलटा
छे तेने भेदज्ञान क््यांथी थाय? यथार्थ आत्मस्वरूपनो विचार अने निर्णय करे तो
भेदज्ञान थाय. विचार एटले विकल्पनी वात नथी पण ज्ञानमां सम्यक् निर्णय करवो ते
विचारनुं कार्य छे. वस्तुस्वरूप तरफ विचार झूके तो भेदज्ञान थाय.
मारुं व्याप्य–व्यापकपणुं मारामां छे, पर साथे मारे अंशमात्र–व्याप्य–व्यापकपणुं
के कर्ताकर्मपणुं नथी. आवा द्रढ विचारज्ञानवडे उपयोग अंतरमां वळतां भेदज्ञान थाय
छे. ‘कर विचार तो पाम’ भगवाने समवसरणमां जेवुं वस्तुस्वरूप कह्युं तेवुं विचारमां
लेतां तेना अभ्यासथी तेनो अनुभव थाय छे.
वस्तुमां भेद पाडीने विचार करवामां आवे तो ते पण पोतामां ने पोतामां ज
समाय छे, भेद पाडतां पण पर साथे तो वस्तुने कर्ताकर्मपणानो संबंध थतो नथी; पर
साथेना कर्ताकर्म संबंधनी वात तद्न ऊखेडी नांखी. पोतामां कर्ता–कर्मनो भेद पाडवो
एटलो पण व्यवहार छे, ने एकवस्तुना परमार्थ अनुभवमां तो एटलो भेद पण नथी.
पोताना समस्त गुण–पर्यायोने पोतामां ज समावीने, एकवस्तुपणे ज्ञानज्योति
पोताना आत्माने देखे छे. आवी ज्ञानज्योतिमां कोई विभावनो प्रवेश नथी, समस्त
विभावथी जुदा निजस्वरूपने ते अनुभवे छे माटे ते ज्ञानज्योति निजस्वरूपनी
अनुभवनशील छे ने परभावोनी मेटनशील छे, एटले के स्वरूपने अनुभववानो तेनो
स्वभाव छे ने परभावोने तोडवानो तेनो स्वभाव छे. आवी भेदज्ञानज्योति आत्मामां
प्रगटे ते मंगलप्रभात छे.