Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : आसो :
अर्थ:– प्रथम तो संसारमां बुद्धि होवी ज दुर्लभ छे. अने परलोक अर्थे बुद्धि थवी
तो अति दुर्लभ छे; एवी बुद्धि प्राप्त थया छतां जेओ प्रमाद करे छे ते जीवो विषे
ज्ञानीओने शोच थाय छे.
आ दुर्लभ मनुष्यजन्म पामीने जेने साचा जैनी थवुं छे तेणे तो सत्समागम
अने शास्त्रना आश्रये तत्त्वनिर्णय करवो योग्य छे; पण जे तत्त्वनिर्णय तो नथी करतो,
अने पूजा, स्तोत्र, दर्शन, त्याग, तप, वैराग्य, संयम, संतोष आदि बधांय कार्यो करे छे,
तेनां ए बधांय कार्यो असत्य छे, तेनाथी मोक्ष नथी. माटे सत्समागमे आगमनुं सेवन,
युक्तिनुं अवलंबन, परंपरा गुरुओनो उपदेश अने स्वानुभव द्वारा तत्त्वनिर्णय करवो
योग्य छे. जिनवचन तो अपार छे, तेनो पूरो पार तो श्री गणधरदेव पण पाम्या नहि.
माटे जे मोक्ष– मार्गनी प्रयोजनभूत रकम छे ते तो निर्णयपूर्वक अवश्य जाणवा योग्य
छे. कह्युं छे के:–
अन्तो णत्थि सुईणं कालो थोओवयं च दुम्मेहा।
तं णवर सिक्खियव्वं जिं जरमरणक्खयं कुणहि।।
अर्थ:– श्रुतिओनो अन्त नथी, काळ थोडो छे, अने बुद्धि अल्प छे; माटे हे जीव!
तारे ते शीखवा योग्य छे के जेथी तुं जन्ममरणनो नाश करी शके.
आत्महित माटे प्रथम सर्वज्ञनो निर्णय
हे जीवो! तमारे जो पोतानुं भलुं करवुं छे तो सर्व आत्महितनुं मूळ कारण जे
आप्त तेना साचा स्वरूपनो निर्णय करी, ज्ञानमां लावो. कारण के सर्वे जीवोने सुख प्रिय
छे, सुख भावकर्मोना नाशथी थाय छे, भावकर्मनो नाश सम्यक्चारित्रथी थाय छे,
सम्यक्चारित्र–सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक थाय छे, सम्यग्ज्ञान आगमथी थाय छे, आगम
कोई सर्वज्ञ वीतराग पुरुषनी वाणीथी उपजे छे. माटे जे सत् पुरुष छे तेमणे पोताना
कल्याण अर्थे सर्व सुखनुं मूळ कारण जे आप्त–अर्हंत–सर्वज्ञ परमात्मा तेमनो
युक्तिपूर्वक सारी रीते सर्वथी प्रथम निर्णक करी आश्रय लेवो योग्य छे. हवे जेनो उपदेश
सांभळीए छीए, जेना कहेला मार्ग उपर चालवा मागीए छीए, जेनी सेवा पूजा,
आस्तिकयता, जाप, स्मरण, स्तोत्र, नमस्कार, अने ध्यान करीए छीए एवा जे अर्हंत
सर्वज्ञदेव, तेमनुं प्रथम पोताना ज्ञानमां स्वरूप तो भास्युं ज नथी तो तमे निश्चय कर्या
विना कोनुं सेवन करो छो? लोकमां पण एवी पद्धति छे के अत्यंत निष्प्रयोजन वातनो
पण निर्णय करी प्रवर्ते छे. अने तमे आत्महितना मूळ आधारभूत जे अर्हंतदेव तेनो
पण निर्णय कर्या विना ज प्रवर्तो छो, तो ए मोटुं आश्चर्य छे!
वळी तमने निर्णय करवा योग्य ज्ञान पण प्राप्त थयुं छे. माटे तमे आ अवसरने
वृथा न गुमावो. आळस आदि छोडी, तेना निर्णयमां पोताने लगावो के जेथी तमने
वस्तुनुं स्वरूप, जीवादिनुं स्वरूप, स्व–परनुं भेदविज्ञान, आत्मानुं स्वरूप, हेय–उपादेय
अने शुभ–अशुभ–शुद्ध अवस्थारूप पोताना पद–अपदनुं