: आसो : आत्मधर्म : २प :
स्वरूप–ए बधानुं सर्व प्रकारथी यथार्थ ज्ञान थाय. सर्व मनोरथ सिद्ध करवानो उपाय जे
अर्हंत–सर्वज्ञनुं यथार्थ ज्ञान, ते जे प्रकारथी सिद्ध थाय ते प्रथम करवा योग्य छे. आ रीते
सर्वथी प्रथम अर्हंत सर्वज्ञनो निर्णय करवारूप कार्य करवुं ए श्रीगुरुनी मूळ शिक्षा छे.
साचुं ज्ञान सम्यग्द्रष्टिने होय छे.
पोतपोताना प्रकरणमां पोतपोताना ज्ञेयसंबंधी अल्प वा विशेष ज्ञान सर्वने
होय छे, कारण के लौकिक कार्य तो बधाय जीवो जाणपणापूर्वक ज करे छे, तेथी लौकिक
जाणपणुं तो सर्व जीवोने थोडुं वा घणुं बनी ज रह्युं छे. पण मोक्षमार्गमां प्रयोजनभूत
जे आप्तआगम आदि पदार्थो तेनुं साचुं ज्ञान सम्यक्द्रष्टिने ज होय छे, तथा सर्व ज्ञेयनुं
ज्ञान केवळी भगवानने ज होय छे एम समजवुं.
जिनमतनी आज्ञा
कोई कहे छे के:– सर्वज्ञनी सत्ता (हयाती) नो निश्चय अमाराथी न थयो तो शुं थयुं?
ए देव तो साचा छे ने? माटे पूजनादि करवा अफळ थोडा ज जाय छे.? तेनो उत्तर:– जो
तमारी किंचित् मंदकषायरूप परिणति थशे तो पुण्यबंध तो थशे; परंतु जिनमतमां तो देवना
दर्शनथी आत्मदर्शनरूप फळ थवुं कह्युं छे, ते तो नियमथी सर्वज्ञनी सत्ता जाणवाथी ज थशे,
अन्य प्रकारथी नहि थाय; ए ज श्री प्रवचनसार गाथा ८०मां कह्युं छे.
वळी तमे लौकिक कार्योमां तो एवा चतुर छो के वस्तुना सत्ता आदि निश्चय कर्या
विना जराय प्रवर्तता नथी; अने अहीं तमे सत्ताने निश्चय पण न करतां घेला
अनध्यवसायी (निर्णय वगरना) थई प्रवर्तो छे, ए मोटुं आश्चर्य छे! श्लोकवार्तिकमां
कह्युं छे के–जेनी सत्तानो ज निश्चय नथी थयो तेनुं परीक्षावाळाए केवी रीते स्तवन
करवा योग्य छे? माटे तमे सर्व कार्योनी पहेलां पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध
करो, ए ज धर्मनुं मूळ छे तथा ए ज जिनमतनी आम्नाय छे.
आत्मकल्याणना अभिलाषीने भलामण
जेणे आत्मकल्याण करवुं छे तेणे जिनवचनरूप आगमनुं सेवन, युक्तिनुं अवलंबन
परंपरा गुरुनो उपदेश तथा स्वानुभव ए कर्तव्य छे; प्रथम प्रमाण, नय, निक्षेप, आदि
उपायथी जिनवचननुं सत्यपणुं पोताना ज्ञानमां नक्की करवुं. अने गम्यमान थयेलां
सत्यरूप साधनना बळथी उत्पन्न थयेलुं जे अनुमान, तेनाथी सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करी,
तेनां श्रद्धान, ज्ञान, दर्शन, पूजन, भक्ति, स्तोत्र अने नमस्कारादिक करवा योग्य छे.
श्री जिनेन्द्रदेवनो सेवक जाणे छे के मारुं भलु–बूरुं मारा परिणामोथी ज थाय छे. आम
समजीने ते पोताना हितना उद्यममां प्रवर्ते छे, तथा अशुद्ध कार्योने छोडे छे. जेणे जिनदेवना
साचा सेवक थवुं होय, वा जिनदेवे उपदेशेला मोक्षमार्गमां प्रवर्तवुं होय तेणे सर्वथी पहेलां
जिनदेवना साचा स्वरूपनो पोताना ज्ञानमां निर्णय करी तेनुं श्रद्धान करवुं ए कर्तव्य छे.