Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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मु मु क्षु नी जी व न भा व ना
(मुमुक्षुने जीवनमां सदाय केवी भावना होय छे तेना दश बोल)
(१) में मारा जीवनमां संतोनी सेवानुं ने आत्माने साधवानुं ध्येय अपनाव्युं छे.
(२) मारा आ सर्वोच्च ध्येयनी सिद्धिने माटे उत्कृष्ट उत्साहपूर्वक मारे दिनरात उद्यम
करवानो छे.
(३) आवा उद्यमवंत साधर्मीजनो प्रत्ये अत्यंत वात्सल्यभावे वर्तीश.
(४) मारा ध्येयने साधवा माटे ज्ञानभावना अने वैराग्यभावना ए बे मारा सदाय
साथीदार छे. एमनी सहाय वडे हुं मारा ध्येयने सदाय ताजुं राखीश.
(प) जीवनमां सुख–दुःखनी गमे तेवी उथलपाथलमांय हुं मारा ध्येयने कदी ढीलुं पडवा
नहि दउं, ते माटे उत्तमपुरुषोना आदर्शजीवनने सदाय मारी नजरसमक्ष राखीश, ने
आराधनानो उत्साह वधारीश.
(६) देव–गुरु–शास्त्रनी सेवाना सत्कार्यो माटे मारा जीवनने सदाय उत्साहित राखीश,
ने उल्लासपरिणामथी तेमां प्रवर्तीश.
(७) आ जीवन छे ते आत्मसाधना माटे ज छे, तेथी तेनी क्षण पण निष्प्रयोजन न
वेडफाय, ने प्रमाद वगर आत्मसाधना माटे ज प्रत्येक क्षण वीते ए माटे सतत जागृत
रहीश हररोज आत्मामां ऊंडो ऊतरवानो अभ्यास करीश.
(८) मारा हित माटे गुरुदेव वारंवार कहे छे के अरे जीव! तुं तारा स्वभावनो महिमा
कर. चारगतिना शरीर ने परभावोमां वर्ततुं ते शरम छे; अशरीरी आत्मामां उपयोगने
जोडीने तेने स्वविषय बनावीने तेमां ठर....तो आ शरमजनक जन्मो छूटे, ने क्षणक्षण
जे दुःख थाय छे ते मटे.
(९) निजस्वरूपनी प्राप्ति ते आत्मार्थीनो मनोरथ छे. पोताना स्वरूप वगर
आत्मार्थीने एक क्षण पण गमे नहि.
(१०) सन्तो आपणने सदाय केटली आत्मप्रेरणा आपी रह्या छे! जाणे सम्यक्त्व ज
साक्षात् आपी रह्या छे. एमना जीवननुं सूक्ष्मताथी अवलोकन करतां पण सम्यक्त्व
थई जाय. आवा सन्तो आपणी समक्ष बिराजीने सदाय आपणा उपर महान कृपा करी
रह्या छे. ए कृपाना प्रतापे आपणे आपणुं स्वानुभवकार्य साधी लेवानुं छे. जीवनमां
बीजुं बधुं भूली जईने आ एक ज आत्मकार्यमां बधी ताकात लगाववानी छे.
पंच परमेष्ठी प्रभुने नमस्कार हो.