गुरुदेव कहे छे.
गुरुदेव वारंवार कहे छे के अरे जीव! तुं महिमा तारा
स्वभावनो कर.
चार गतिना शरीरने धारण करवा ते तो शरम छे.
अशरीरी आत्मामां उपयोग जोडीने, तेने स्व विषय
बनावीने तेमां ठर...तो आ शरमजनक जन्मो छूटे.
निजस्वरूपनी प्राप्ति ते आत्मार्थीनो मनोरथ छे;
पोताना स्वरूप वगर एक क्षण पण आत्मार्थीने गमे नहि.
आत्मप्राप्ति वगरनुं जीवन आत्मार्थी केम जीवी शके?
निजस्वरूपना अंतरंग प्रयासथी सम्यक्त्व अत्यंत
सुगम होवा छतां जीवे आटला बधा काळ सुधी ते कार्य केम
न कर्युं.–एनो पण खेद छोडीने हवे प्रसन्नताथी ने उत्साहथी
जीवे ते कार्य तत्काळ करवा जेवुं छे. जाणे अत्यारे ज सत्संगे
आत्म चिंतनथी स्वानुभव करीए.
संतो आपणने सदाय केटली आत्मानी प्रेरणा आपी
रह्या छे! जाणे सम्यक्त्व ज साक्षात् आपी रह्या छे. एमना
जीवननुं सूक्ष्मताथी अवलोकन करतां पण सम्यक्त्व थई
जाय–एवा संतो आपणी समक्ष बिराजीने सदाय आपणा
उपर महान कृपा करी रह्या छे. ए कृपाना प्रतापे आपणे
आपणुं स्वानुभव–कार्य साधी लेवानुं छे. अत्यारे तो
दुनियामां बीजुं बधुंय भूली जईने आ एक ज कार्यमां
बधी ताकात लगाववानी छे.
(एक पत्र)