Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : आसो :
: अनुभव करो...ने मोहने छोडो.
अनुभव करवानो अवसर क््यो? तो कहे छे के हमणां, अत्यारे ज.
हे भव्य! अत्यारे ज स्वानुभव माटेनुं उत्तम चोघडीयुं छे,
अत्यारे ज उत्तम मुहूर्त छे; ज्यारे स्वानुभव कर त्यारे स्वानुभवनो
काळ ते सर्वोत्तम काळ छे. माटे जगतनी जंजाळनी मोहजाळ तोडीने
तुं स्वानुभव अभ्यासमां लाग स्वानुभवने माटे संतोना प्रतापे
सब अवसर आ चूका है.
–––––––
त्यजतु जगदिदानी मोहमाजन्मलीढं रसयतु रसिकानां रोचनं ज्ञानमुद्यत।
इह कथमपि नात्माऽनात्मना साकमेकः किल कलयति काले क्वापि तादात्म्यवृत्तिम्।।
जगतने संबोधीने कहे छे : हे जगत्! एटले के संसारना समस्त जीवो! तमे
ज्ञानना रसिया थईने पर साथेनी एकताना मोहने छोडो; मिथ्यात्वपरिणामने सर्वथा
छोडो.–
क््यारे? तत्काल....हमणां ज...अत्यारे ज छोडो. अत्यारे ज एने छोडवानो अवसर छे.
वाह! जुओ, आ स्वानुभवनी प्रेरणा! अत्यारे ज आवो स्वानुभव करो.
स्वानुभवनो आ अवसर छे.
आत्मा पर साथे कदी एकमेक थई गयो नथी, छतां मोहथी जीव तेनी साथे
एकपणुं मानी बेठो छे....तेने कहे छे के अरे जीवो! आ मोहने छोडवाना टाणां आव्या
छे, चैतन्यना आनंदने अनुभववाना आ टाणां आव्या छे.–माटे स्वानुभवना रसिया
थईने तत्काळ हमणां अत्यारे ज मोहने छोडो. ज्यां अंतरमां शुद्धआत्माने लक्षमां
लईने तेनो रसिक–रुचिवंत थयो त्यां क्षणमात्रमां मोह छूटी शके छे. मोह क्यारे छूटशे?
एवा विचारनी वात नथी; अरे, अत्यारे ज मोहने छोडवानो अवसर छे. स्वानुभवनुं
अत्यारे ज उत्तम चोघडियुं छे.
प्रवचनसारमां पण अमृतचंद्राचार्यदेवे कह्युं छे के–स्याद्वादविद्याना बळथी
विशुद्ध– ज्ञाननी कळावडे आ एक आखा शाश्वत स्वतत्त्वने प्राप्त करीने आजे ज
भव्यजीवो परम