Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : आत्मधर्म : २९ :

तत्त्वरसिक जिज्ञासुओनो प्रिय
विभाग–दश प्रश्न दश उत्तर. आ
विभाग पू. गुरुदेव पासे थयेल
तत्त्वचर्चामांथी तेमज शास्त्रोमांथी
तैयार करवामां आवे छे.
*
उत्तर:– जन्म–मरण वगरनो एवो जे आत्मा–तेमां तन्मयदशा थतां ने देह
उत्तर:– हा, मिथ्याद्रष्टि होय तो जन्मी शके; पण आराधक मनुष्य मरीने
कर्मभूमिना मनुष्यमां (–विदेहादिमां) जन्मे नहि–ए नियम छे. विराधकजीव गमे
त्यां जन्मे. कदाच कोई मनुष्यने पूर्वे मिथ्यात्वदशामां मनुष्यनुं आयुष बंधाई गयुं
होय ने पछी सम्यक्त्व (–क्षायिक) पामे तो ते आराधक जीव मरीने मनुष्यमां
ऊपजे, पण ते असंख्यात वर्षना आयुषवाळा भोगभूमिना मनुष्यमां ज ऊपजे,
कर्मभूमिमां न ऊपजे ए नियम छे. विदेहक्षेत्र ते कर्मभूमि छे. भोगभूमिमां चोथा
गुणस्थानथी उपरना कोई गुणस्थानो होतां नथी. भोगभूमिनो जीव त्यांथी मरीने
नियमथी स्वर्गमां ज जाय.