आव्या विना रहे नहि. देडकुं के हाथी, सिंह के वाघ, गाय, के बकरी नारकी, देवो,
मनुष्यो, ८ वर्षनां बाळक के मोटा वृद्ध, स्त्री के पुरुष, बधाय जीवोने कहे छे के हमणां ज
मोहने छोडीने शुद्धआत्माने अनुभवो. आत्माना रसिक थाय ते बधायथी आवो
अनुभव थई शके छे. ने जेने शुद्धज्ञानस्वरूप रुच्युं तेने तेना परम आनंदनो साक्षात्
स्वाद आवे छे. एकलो अनुमानगोचर रह्या करे ने साक्षात् अनुभवरूप न थाय–एम
नथी. एना रसिया थवुं जोईए. एनो रसियो थईने, एटले जगतनो रस छोडीने,
स्वमां एकत्व कर ने पर साथेनुं एकत्व छोड, तत्क्षण छोड, एम करतां तत्क्षण तने
चैतन्यना परम आनंदनो साक्षात् अनुभव थशे.
नास्ति; अर्थात् आनंदनी प्राप्ति ने मोहनो त्याग–एवी कार्यसिद्धि थाय छे, आ उत्तम
फळ छे. वारंवार आवा स्वानुभवनो अभ्यास करतां विभावपरिणाम के कर्मनो संबंध
जीव साथे एक क्षण पण रहेशे नहि, ते जीवथी भिन्नपणे ज रहेशे. एकवार
स्वानुभवथी एकत्वबुद्धि छूटी ते छूटी, फरीने कदी तेमां एकत्वबुद्धि थवानी नथी.
परिणति परभावथी जुदी पडी ते पडी, हवे ते परिणतिमां रागादि परभावो के
कर्मबंधन कदी एकमेक थवाना नथी; एक समय पण आत्मामां ते टकशे नहि, कोई
प्रकारे आत्मा साथे तेनी एकता थशे नहि. जुओ, आ स्वानुभववडे कार्यसिद्धि थई;
हमणां ज मोहनो नाश करीने आवी कार्यसिद्धि करो.–आम स्वानुभवनी जोसदार प्रेरणा
आपी छे.
साथे तन्मय थवानुं नथी. ज्ञान सदाय ज्ञानपणे ज रहेशे, स्वमां ज सदा एकत्व रहेशे.
पहेलां अज्ञानथी बंधकरणशील हतो, तेनाथी छूटीने हवे स्वभावनो अनुभवनशील
थयो, ते फरीने क्षणमात्र पण बंधन साथे एकत्व पामे नहि. स्वानुभववडे मोहनो नाश
थतां आवी अपूर्व दशा खीली.