देहरूपी डब्बीमां कषायरूपी काटनी वच्चे रहेलुं चैतन्यप्रकाशथी चमकतुं आत्मरत्न
जड देहथी जुदुं छे ने कषायरूपी काटथी पण जुदुं छे. डब्बीमांथी रत्न उपाडी ल्यो
त्यां ते डब्बीथी ने काटथी जुदुं ज छे, तेम रागथी ने देहथी पार चैतन्यतत्त्वने
अंतरद्रष्टिमां ल्यो त्यां ते तत्त्व रागथी ने देहथी पार चैतन्यतेजपणे अनुभवमां
आवे छे.
विरक्त थईने ते शुद्धात्माने ज चिंतवे छे; तेने संसार छूटी जाय छे. माटे
भेदज्ञानपूर्वक शुद्धात्मध्यान कर्तव्य छे. आवा ध्यान वगर बीजा उपायथी आत्मा
जाणवामां आवी जाय–एवो एनो स्वभाव नथी.