व्यापकभावथी तेने करे छे. जीवना अशुद्ध परिणाममां पुद्गलनुं व्याप्य–
व्यापकपणुं नथी, ने पुद्गलना कार्योमां जीवनुं व्याप्य–व्यापकपणुं नथी, एटले के
जीव तथा अजीवने एकमेकपणुं नथी. अत्यंत जुदापणुं छे.
ज भोगवे छे. बहारना संयोगने कोई जीव भोगवतो नथी. पुद्गलमां कांई दुःख–
सुख नथी. अज्ञानीजीव मोहथी संयोगमां सुख–दुःख माने छे.
अत्यंत जुदो छे.
शरीरवाळा नानकडा राजकुंवरने उतार्यो होय, ने ते कोठीनी चारे बाजु जोसदार
अग्नि सळगाव्यो होय, तेमां बफाता राजकुमारने जे दुःख थाय छे ते दुःख
शरीरना कारणे नथी, अग्निना कारणे नथी, पण अंदर कषायना अग्निनुं दुःख
छे. ए कोठीमां पूरायेला राजकुमार करतांय अनंतगुणा प्रतिकूळ संयोगो पहेली
नरकना नानामां नाना (१०, ००० वर्षना आयुषवाळा) जीवने छे. छतां त्यां
संयोगनुं दुःख नथी. त्यां पण कोई जीव देहथी पार चिदानंदतत्त्वनी अनुभूति
प्रगट करीने परम आनंदने आस्वादे छे. –एवा असंख्याता जीवो पहेली नरकमां
छे, सातमी नरकमांय असंख्य जीवो छे. देहनुं दुःख कोईने नथी. (गुरुदेवना
मुखेथी आ अमृतधारा वरसती हती त्यां बहारमां एकाएक वरसाद आव्यो. –ते
प्रसंगना गुरुदेवना उद्गार माटे आ लेखनो छेल्लो भाग जुओ.)