Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : आत्मधर्म : ९ :
गाढा–पक्का भेदज्ञान
अने अमृतनी वृष्टि)
(कलशटीका–प्रवचन: कळश: २०३)
देहादिनो के जडकर्मनो कर्ता जीव नथी; अने जीवनी पर्यायमां जे
अशुद्धचेतनारूप राग–द्वेष थाय छे ते जडनुं कार्य नथी, पण जीव एकलो ज व्याप्य–
व्यापकभावथी तेने करे छे. जीवना अशुद्ध परिणाममां पुद्गलनुं व्याप्य–
व्यापकपणुं नथी, ने पुद्गलना कार्योमां जीवनुं व्याप्य–व्यापकपणुं नथी, एटले के
जीव तथा अजीवने एकमेकपणुं नथी. अत्यंत जुदापणुं छे.
जीव अने अजीव बंने भेगा थईने रागद्वेष करे छे एम पण नथी. रागादि
अशुद्ध परिणामने जीव पोते एकलो ज करे छे ने तेना फळरूप दुःखने जीव एकलो
ज भोगवे छे. बहारना संयोगने कोई जीव भोगवतो नथी. पुद्गलमां कांई दुःख–
सुख नथी. अज्ञानीजीव मोहथी संयोगमां सुख–दुःख माने छे.
अरे जीव! तुं देहमां सुख मानीने के देहनी प्रतिकूळतामां दुःख मानीने सूतो
छो –पण सांभळ! तारुं तत्त्व देहथी भिन्न छे, तारुं सुख–दुःख देहमां नथी. देहथी तुं
अत्यंत जुदो छे.
एक माणस समाय एटली ज लांबी–पहोळी लोढानी कोठी होय, पचीस
हाथ ऊंची होय, क््यांयथी हवा आवे तेवुं काणुं न होय, तेमां एक सुंवाळा–कोमळ
शरीरवाळा नानकडा राजकुंवरने उतार्यो होय, ने ते कोठीनी चारे बाजु जोसदार
अग्नि सळगाव्यो होय, तेमां बफाता राजकुमारने जे दुःख थाय छे ते दुःख
शरीरना कारणे नथी, अग्निना कारणे नथी, पण अंदर कषायना अग्निनुं दुःख
छे. ए कोठीमां पूरायेला राजकुमार करतांय अनंतगुणा प्रतिकूळ संयोगो पहेली
नरकना नानामां नाना (१०, ००० वर्षना आयुषवाळा) जीवने छे. छतां त्यां
संयोगनुं दुःख नथी. त्यां पण कोई जीव देहथी पार चिदानंदतत्त्वनी अनुभूति
प्रगट करीने परम आनंदने आस्वादे छे. –एवा असंख्याता जीवो पहेली नरकमां
छे, सातमी नरकमांय असंख्य जीवो छे. देहनुं दुःख कोईने नथी. (गुरुदेवना
मुखेथी आ अमृतधारा वरसती हती त्यां बहारमां एकाएक वरसाद आव्यो. –ते
प्रसंगना गुरुदेवना उद्गार माटे आ लेखनो छेल्लो भाग जुओ.)
हवे ए ज रीते कोई जीव उत्तम मिष्टान्न खाईने, केरीनो रस ने गुलाबजांबु
खाईने, कोमळ पथारीमां ठंडी हवामां सूतो होय, ईन्द्राणी जेवी स्त्री पंखो ढाळती होय,