Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : आत्मधर्म : ११ :
भगवती जिनवाणीनुं फरमान
(जिनवाणी बतावे छे–वचनअगोचर वस्तु)
शास्त्रो कांई एम नथी कहेता के तुं अमारी सामे
जोया कर. शास्त्रो तो कहे छे के तुं तारी सामे जो. अमारुं
लक्ष छोडीने अंतर्मुख था ने तारा आत्माने ध्यानमां
ले. तारामां तारुं परिपूर्ण सामर्थ्य छे तेनो तुं आश्रय
कर–एवुं भगवती जिनवाणीनुं फरमान छे. जेणे
स्वाश्रयथी आत्माने जाण्यो तेणे ज जिनवाणीनी
आज्ञा मानी; जिनवाणीए जेवो कह्यो तेवो आत्मा
तेणे अनुभवमां लीधो–ए ज जिनवाणीनी उपासना
छे. गणधरो–ईन्द्रो– चक्रवर्तीओनी सभामां
तीर्थंकरभगवाने स्वाश्रितमार्गनो ढंढेरो पीटीने उपदेश
आप्यो छे. जेणे स्वाश्रितमार्ग जाण्यो तेणे ज
सर्वशास्त्र जाण्या.
(परमात्म–प्रकाश–प्रवचन : गाथा २३)
* * * * *

आ स्वानुभवगम्य परमात्मतत्त्व एवुं नथी के शब्दो वडे जेने जाणी
शास्त्रथी आत्मा न जणाय–एम कोण कहे छे? –शास्त्रो पोते ज एम कहे
छे. अरे भाई! शुं पर तरफना वलणथी आत्मा जणाय? ना; अरे अंदरना
तारा विकल्पथी पण आत्मा नथी जणातो, त्यां परनी शी वात? शास्त्र
तरफनो विकल्प ते पुण्यबंधनुं कारण छे; तेने जो मोक्षनुं कारण मानीने सेवे तो
मिथ्याबुद्धि थाय छे.