आत्मा छे. अंतर्मुख उपयोगमां आत्मा प्रगटे छे. ईन्द्रिय के मननो विषय ते थाय
नहि. माटे हे शिष्य! आवा ईन्द्रियातित आत्माने स्वानुभवमां लईने तेने ज
उपादेय जाण. आत्माना अनुभव वगरनां शास्त्रभणतर के पंडिताई–ए कांई
मोक्षनुं कारण थतुं नथी. शास्त्रोनी पंडिताई जुदी चीज छे ने अनुभूतिगम्य
परमतत्त्व ए जुदी चीज छे.
परमतत्त्व एवुं तूच्छ नथी के विकल्प वडे गम्य थई जाय. विकल्प वडे के वाणी
तरफना वलणथी आत्मस्वरूपनी प्राप्ति थई जशे एम जे माने तेणे विकल्पथी ने
वाणीथी पार एवा आत्मतत्त्वना अचिंत्य–परम महिमाने जाण्यो नथी.
नथी. माटे हे जीव! तुं बहिरात्मपणुं छोडी, अंतरात्मपणुं प्रगट करी
परमात्मस्वरूपने ध्यानमां ले. परवस्तु सामे जोये स्ववस्तु अनुभवमां नहि आवे.
समाधिमां एटले के उपयोगनी अंतर्मुख एकाग्रतामां तो रागरहित परम शांतिनुं
वेदन छे. उदयभाव वडे तारो परम स्वभाव अनुभवमां नहि आवे. तारो स्वभाव
उदयभावथी तो दूर–दूर छे. सिद्ध भगवंतोनुं अतीन्द्रियस्वरूप पण रागथी के
परसन्मुखी क्षयोपशमथी अर्थात् ईन्द्रियज्ञानथी ओळखातुं नथी, तो तेमना जेवुं
पोताना आत्मानुं स्वरूप छे ते पण ईन्द्रियज्ञानथी जणातुं नथी, परालंबी
क्षयोपशमज्ञानथी पण जणातुं नथी, तो पछी रागादि उदयभावथी तो ते केम
जणाय?
छे, पुण्यना ने पराश्रयना मार्गमां लाग्या छे, पण तेमां परमतत्त्व प्राप्त थतुं नथी.
परमतत्त्व अंतरमां छे, तेनो मार्ग अंतरमां छे. विकल्पमां शोध्ये ते नहि मळे.
तेमां ज शास्त्रोनो आदर छे, ने तेनाथी विपरीत मानवुं तेमां शास्त्रोनो अनादर छे.
शास्त्रो कहे छे के अमे पराश्रयथी लाभ थवानुं कहेतां नथी; छतां पराश्रयथी जे लाभ