Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : आत्मधर्म : १७ :
भक्ति तो घणीये छे पण तेना विचारमां के ध्यानमां मन जराय लागतुं नथी;–तो
तेनी वात जूठी छे. जेनी खरेखरी प्रीति होय तेना विचारमां चिंतनमां मन न
लागे एम बने नहि. बीजा विचारोमां तो तारुं मन लागे छे, ने अहीं स्वरूपना
विचारमां तारुं मन लागतुं नथी,–ए उपरथी तारा परिणामनुं माप थाय छे के
स्वरूपना प्रेम करतां बीजा पदार्थोनो प्रेम तने वधारे छे. जेम घरमां माणसने
खावा–पीवामां बोलवा–चालवामां क््यांय मन न लागे तो लोको अनुमान करी ल्ये
छे के एनुं मन क््यांक बीजे लागेलुं छे; तेम चैतन्यमां जेनुं मन लागे, एनो खरो
प्रेम जागे तेनुं मन जगतना बधा विषयोथी उदास थई जाय.....ने वारंवार
निजस्वरूप तरफ तेनो उपयोग वळे. आ प्रकारे स्वरूपना ध्यानरूप भक्ति
सम्यग्द्रष्टिने होय छे तेथी एवा शुद्धस्वरूपने साधनारा पंचपरमेष्ठी वगेरेना
गुणोने पण ते भक्तिथी ध्यावे छे.
७. लघुता: पंचपरमेष्ठी वगेरे महापुरुषो पासे धर्मी जीवने पोतानी अत्यंत
लघुता भासे छे. अहा, क््यां एमनी दशा! ने क््यां मारी अल्पता! अथवा
सम्यग्दर्शनादि के अवधिज्ञानादि थयुं पण चैतन्यना केवळज्ञानादि अपार गुणो
पासे तो हजी घणी अल्पता छे–एम धर्मीने पोतानी पर्यायमां लघुता भासे छे.
पूर्णतानुं भान छे एटले अल्पतामां लघुता भासे छे. जेने पूर्णतानुं भान नथी
तेने तो थोडाकमां पण घणुं मनाई जाय छे.
८. समता: बधाय जीवोने शुद्धस्वभावपणे सरखा देखवा तेनुं नाम
समता छे; परिणामने चैतन्यमां एकाग्र करतां समभाव प्रगटे छे. जेम
महापुरुषोनी समीपमां क्रोधादि विसमभाव थता नथी–एवी ते प्रकारनी
भक्ति छे, तेम चैतन्यना साधक जीवने क्रोधादि उपशांत थईने अपूर्व समता
प्रगटे छे.
९. एकता: एक आत्माने ज पोतानो मानवो, शरीरादिने पर जाणवा;
रागादि भावोने पण स्वरूपथी पर जाणवा, ने अंतर्मुख थईने स्वरूप साथे एकता
करवी, –आवी एकता ते अभेदभक्ति छे, ने ते मुक्तिनुं कारण छे. स्वमां एकतारूप
आवी भक्ति सम्यग्द्रष्टिने ज होय छे.
वाह! जुओ आ सम्यग्द्रष्टिनी नवधाभक्ति, शुद्ध आत्मस्वरूपनुं श्रवण,
कीर्तन, चिंतन, सेवन, वंदन, ध्यान, लघुता, समता अने एकता–आवी
नवधाभक्तिवडे ते मोक्षमार्गने साधे छे.
प्रश्न: ज्ञानी नवधाभक्ति करे ए तो बताव्युं; पण ज्ञानी तप करे खरा?
उत्तर: हा, ज्ञानी तप करे,–पण कई रीते? के पोताना शुद्धस्वरूप सन्मुख
थईने ते तप वगेरे क्रिया करे छे. –आ ज्ञानीनो आचार छे. ज्ञानीना आवा
अंतरंगआचारने