स्वानुभव वधी जाय छे. माटे एने तुं जाण. आत्माना ज्ञान–ध्यानवडे धर्मीने घणी
शुद्धता वधती जाय छे ने असंख्यातगणी निर्जरा थती जाय छे. बहारनो उघाड तो
वधे के न पण वधे पण अंदर चैतन्यने अनुभववानी ज्ञाननी शक्ति तेने जे
वधती जाय छे, ने आवरण एकदम तूटतुं जाय छे. एक क्षणभरना स्वानुभवथी
ज्ञानीने कर्मो तूटे छे, अज्ञानीने लाखो उपायो करतां पण एटलां कर्मो तूटतां नथी.
आम सम्यक्त्वनो अने स्वानुभवनो कोई अचिंत्य महिमा छे–एम समजीने हे
जीव! तुं तेनी आराधनामां तत्पर था.
गुरुदेव कहे छे के – शुद्धोपयोग ते भाई छे, केमके ते
शुद्धोपयोग मोक्षमां जवा माटे भाईसमान सहायक छे.
अने निर्मळ सम्यग्ज्ञाननी परिणति ते भद्रस्वभाववाळी
प्रशंसनीय बहेन छे,–के जे मोक्षार्थी आत्मा उपर उपकार
करे छे. ज्ञानपरिणति ते आत्मानी मुख्य अने चोक्कस
उपकार करनारी बहेन छे. ते निर्मळ आत्मद्रष्टिरूपी
भगिनी सर्व भयनो नाश करनारी छे, ते स्वयं ज्ञान ने
आनंदरूप छे.