Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : कारतक :
(आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक: १४)
(१९१) शत्रु
निर्मळ ज्ञान–वैराग्यवडे
शुद्धात्माने ध्यावीने जे विषय–
कषायोरूपी शत्रुने हणे छे ते ज
परमात्माना आराधक छे. विषयकषाय
ते शुद्धात्माना शत्रु छे; तेनो जे नाश न
करे ते शुद्धात्मानो आराधक केवो?
स्वरूपने ते ज आराधे छे के जेने
विषयकषायनो प्रसंग नथी. सर्व
दोषोथी रहित एवा
निजपरमात्मतत्त्वनी आराधनाना
घातक विषयकषायो सिवाय बीजो कोई
शत्रु नथी.
(१९२) बे मित्र
आत्माने निजस्वरूपनी
आराधनामां बे मित्र छे–एक वैराग्य ने
बीजुं तत्त्वज्ञान; विषयकषायनी
निवृत्तिरूप शुद्धात्मानी अनुभूति परम
ज्ञानपूर्वक एवो वैराग्य थाय छे.
परभावोथी परम विरक्तिरूप वैराग्य
वगर स्वानुभूति थाय नहि. ज्यारे
समस्त परभावोथी वैराग्य थाय एटले
वैराग्य थाय.–आ रीते वैराग्य अने
तत्त्वज्ञान ए बंने परस्पर एकबीजाना
मित्र छे. स्वरूपने साधनार जीवने आ
बे मित्र परम सहायक छे; तेमना वडे
ध्यान अने वीतरागी समाधि पमाय छे.
के त्यांथी परिणति पाछी वळीने
स्वभाव तरफ वळे त्यारे ज तत्त्वज्ञान
साचुं थाय, ने ज्यारे स्वसन्मुख
परिणतिथी सम्यक् तत्त्वज्ञान थाय
त्यारे ज परभावोथी साची विरक्तिरूप
(१९३) साचो रक्षणहार
मारो सहजस्वभाव माराथी ज
रक्षित छे, ते स्वभावना आश्रये थयेली
निर्मळ– परिणति पण स्वयं माराथी ज
रक्षित छे, कोई प्रतिकूळता के
रागादिभावो तेने हणी शके नहि.
एटले मारी कोई रक्षा नहि करे–एवो
भय ज्ञानीने नथी. स्वभावमां झूकेली
मारी परिणतिने हणनार कोई छे ज
नहि. स्वयं रक्षितने वळी भय केवो?
बीजा रक्षकनी ओशियाळ केवी? अरे,
राग मारामां आवीने मारा स्वभावने
हणी जशे– एवो अरक्षाभय ज्ञानीने
नथी, केमके रागने स्वभावथी जुदो ज
जाण्यो छे, रागने स्वभावमां एकपणे
पेसवा देता ज नथी; ते रागथी जुदा
सहज ज्ञानने सदाय अनुभवे छे, तेथी
निःशंक अने निर्भय छे. प्रतिकूळतानो
हुमलो आवशे तो कोण मारी रक्षा करशे
–एवो भय ज्ञानीने नथी. हुं ज मारो
रक्षक छुं. मारो आत्मा पोते ज पोतानो
रक्षणहार छे.