Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : आत्मधर्म : २३ :
(१९४) पथिक
मोक्षनो पथिक आ आत्मा,
देहरूपी वृक्षनी छायामां जराक विश्राम
लेवा रोकायो छे....अंते तो एने छोडीने
सिद्धालयमां जवानुं छे. जेम पथिक
झाडने पोतानुं न माने तेम मोक्षनो
पथिक देहने पोतानो न माने.
(१९प) धर्मनुं फळ–आनंद
सम्यग्दर्शन थतां आनंदनो
अनुभव थयो, त्यां निःशंकपणे धर्मी
जाणे छे के आवो आखोय आनंद ते हुं
छुं. ज्यां पोतानो आनंद पोतामां देख्यो,
एनो स्वाद चाख्यो त्यां परमां क््यांय
सुखबुद्धि ज्ञानीने रहेती नथी.
आत्माना आनंदनुं वेदन ए ज मुख्य
वस्तु छे, ए ज धर्मनुं फळ छे.
बाह्यसंयोग ए कांई धर्मनुं फळ नथी.
धर्मना फळरूप आनंदने धर्मीजीव
अरे जीव! श्रद्धाना एक टंकारे
सर्वज्ञता ले एवो तुं छो. छतां तुं केटलो
कमजोर छे के एक सेकंड पण विकल्प
वगर नथी रही शकतो! तारा
निर्विकल्प विज्ञानघनना अत्यंत मधुर
आनंदस्वादने चाखवा एक क्षण तो
विकल्पमां क््यांय विश्राम नथी.
चैतन्यनी अनुभूतिमां ज विश्राम छे.
(१९८) अंतर्मुखपरिणति
स्ववस्तुनी द्रष्टि थतां धर्मीने जे
अंतर्मुख परिणति थई, ते शुद्ध
निर्विकल्प छे. ते ‘अंतर्मुख’ परिणति’
अने ‘बहिर्मुख विकल्प’ ए बंने चीज
जुदी पडी गई.
हवे जे अंतर्मुख परिणतिनो कर्ता
थईने परिणम्यो ते बहिर्मुख विकल्पनो
कर्ता केम थाय? ...न ज थाय.
अने ज्यां बहिर्मुख रागनुंय
कर्तृत्व नथी त्यां बहारना परद्रव्यनी
क्रियाना कर्तृत्वनी तो वात ज शी?
(१९९) धर्मीजीवनी परिणति
मंगळरूप छे
–अंतर्मुख परिणतिवडे जे
धर्मीजीव शुद्धभावमां तन्मय थईने
परिणम्यो ते हवे अशुद्धतामां तन्मय
केम थाय? ....न ज थाय.
ने अशुद्धतामां पण जे तन्मय न
थाय ते जड साथे तो तन्मयपणुं केम
माने? ... न ज माने.
आ रीते अंतर्मुख परिणतिवडे
धर्मीजीव परभावनो अकर्ता ज छे.
आनुं नाम भेदज्ञान छे ने
धर्मीनी आवी परिणति ते मंगळ छे.
(२००) धर्मात्मानुं जीवन
स्वानुभूति ए धर्मात्मानुं खरूं
जीवन छे.
तारे धर्मात्मानुं अंतरनुं खरुं
जीवन चरित्र जाणवुं होय तो तेमनी
स्वानुभूतिने ओळख.
स्वानुभूतिने जाण्या वगर
धर्मात्मानुं जीवन ओळखी शकाय नहि.