Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 27 of 37

background image
: २४ : आत्मधर्म : कारतक :
धर्मना आराधक सम्यग्द्रष्टिनी प्रशंसा
सम्यग्द्रष्टि जीव मोक्षमार्गमां एकलो पण शोभे छे. हे
जीव! सम्यक्त्वनी द्रढतावडे एकलो एकलो मोक्षमार्गे चाल्यो
जा...जगतमां कोईनो साथ न होय तोपण सर्वज्ञभगवान
तारा साथीदार छे.
(गतांकना मुखपुष्ठमां जेनो उल्लेख हतो ते आ प्रवचन छे: पू. गुरुदेव आ
प्रवचनमां सम्यक्त्वनी विरलता बतावीने, गमे तेवी परिस्थिति वच्चे पण तेनी
आराधनानी द्रढतानो उपदेश आपे छे, ने सम्यक्त्वनी आराधनानो उत्साह
जगाडे छे...ए झीलीने सम्यक्त्वनी आराधनामां कटिबद्ध थईए.)
आ जगतमां अत्यंत प्रीतिपूर्वक जे जीव पवित्र जैनदर्शनमां स्थिति करे छे
अर्थात् शुद्ध सम्यग्दर्शनने निश्चलपणे आराधे छे ते जीव भले एक ज होय ने
कदाच पूर्वकर्मोदयथी दुःखित होय तोपण ते प्रशंसनीय छे, केमके सम्यग्दर्शनवडे
परम आनंददायक एवा अमृतमार्गमां ते स्थित छे. अने अमृतमय मोक्षमार्गथी जे
भ्रष्ट छे ने मिथ्यामार्गमां स्थित छे एवा मिथ्याद्रष्टि जीवो घणा होय ने शुभकर्मथी
प्रमुदित होय तोपण तेथी शुं प्रयोजन छे?–ए कांई प्रशंसनीय नथी.
(पद्मनंदीपच्चीशी: देशव्रतउद्योत न–२)
भाई, जगतमां तो कागडा–कूतरा–कीडी–मंकोडा वगेरे अनंता जीवो छे, पण
जैनदर्शन पामीने जे जीव पवित्र सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयनी आराधना करे छे ते ज
जीव शोभनीक छे. सम्यग्दर्शन वगरना पुण्य पण प्रशंसनीय के ईच्छनीक नथी.
जगतमां मिथ्याद्रष्टि घणा होय ने सम्यग्द्रष्टि भले थोडा होय–तेथी शुं? जेम
जगतमां कोलसा घणा होय ने हीरा कोईक ज होय, तेथी शुं कोलसानी किंमत वधी
गई? ना, थोडा होय तोपण झगमगता हीरा शोभे छे, तेम थोडा होय तोपण
सम्यग्द्रष्टि जीवो जगतमां शोभे छे. हीरा हंमेशांं थोडा ज होय. जैनधर्म करतां
अन्य कुमतने माननारा जीवो अहीं घणा देखाय छे तेथी धर्मीने सन्देह न थाय के
ते कुमत साचा हशे! ते तो निःशंकपणे परम प्रीतिथी जैनधर्मने एटले के
सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयने आराधे छे. ने एवा धर्मीजीवोथी ज आ जगत शोभी
रह्युं छे.