Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : आत्मधर्म : २५ :
सर्वज्ञदेवना पवित्र दर्शनमां जे प्रीतिपूर्वक स्थिति करे छे एटले के
निश्चलपणे शुद्ध सम्यग्दर्शनने आराधे छे ते सम्यग्द्रष्टि जीव एकलो होय तोपण
जगतमां प्रशंसनीय छे. भले कदाच पूर्वना कोई दुष्कर्मना उदयथी ते दुःखित होय,
बहारनी प्रति– कुळताथी घेरायेलो होय, निर्धन होय, काळो–कूबडो होय, तोपण
अंदरनी अनंत चैतन्यऋद्धिनो स्वामी ते धर्मात्मा परम आनंदरूप अमृतमार्गमां
रहेलो छे, करोडो–अबजोमां ते एकलो होय तोपण शोभे छे, प्रशंसा पामे छे.
रत्नकरंडश्रावकाचारमां समन्तभद्रस्वामी कहे छे के–जे जीव सम्यग्दर्शन–सम्पन्न छे,
ते चंडाळना देहमां उपज्यो होय तोपण, गणधरदेव तेने ‘देव’ कहे छे; जेम
भस्मथी ढंकायेला अंगारामां अंदर ओजस–तेज छे तेम चंडाळदेहथी ढंकायेलो ते
आत्मा सम्यग्दर्शनना दिव्यगुणथी झळहळी रह्यो छे–
सम्यग्द्रर्शनसम्पन्नमपि मातङ्गदेहजं।
देवा देव विदुर्भस्मगूढाङ्गारान्तरौजसं।।२८।।
सम्यग्द्रष्टि जीव गृहस्थ होय तोपण मोक्षमार्गमां स्थित छे. तेने भले
बहारनी प्रतिकूळता कदाच हो पण अंदरमां तो एने चैतन्यना आनंदनी लहेर छे;
ईन्द्रना वैभवमांय जे आनंद नथी ते आनंदने ते अनुभवे छे. पूर्वकर्मनो उदय तेने
हलावी शकतो नथी. ते सम्यक्त्वमां निश्चल छे. कोई जीव तिर्यंच होय ने
सम्यग्दर्शन पाम्यो होय, रहेवानुं मकान न होय तोपण ते आत्मगुणोथी शोभे छे,
ने मिथ्याद्रष्टि जीव देवना सिंहासने बेठो होय तोपण ते शोभतो नथी, प्रशंसा
पामतो नथी. बहारना संयोगथी कांई आत्मानी शोभा नथी, आत्मानी शोभा
तो अंदरना सम्यग्दर्शनादि गुणोथी छे. अरे, नानकडुं देडकुं होय, समवसरणमां
बेठुं होय, भगवाननी वाणी सांभळी अंदरमां ऊतरी सम्यग्दर्शन वडे चैतन्यना
अपूर्व आनंदने अनुभवे, त्यां बीजा कया साधननी जरूर छे? ने बहारनी
प्रतिकूळता क््यां नडे छे? आथी कहे छे के भले पापकर्मनो उदय होय पण हे जीव!
तुं सम्यक्त्वनी आराधनामां निश्चल रहे. पापकर्मनो उदय होय तेथी कांई
सम्यक्त्वनी किंमत चाली जती नथी, एने तो पापकर्म निर्जरतुं जाय छे. चारेकोर
पापकर्मना उदयथी घेरायेलो होय, एकलो होय, छतां जीव प्रीतिपूर्वक सम्यक्त्वने
धारण करे छे ते अत्यंत आदरणीय छे; भले जगतमां बीजा तेने न माने, भले
ऊंधी द्रष्टिवाळा तेने साथ न आपे, तोपण एकलो एकलो ते मोक्षना मार्गमां
आनंदपूर्वक चाल्यो जाय छे. शुद्धआत्मामां मोक्षनो अमृतमार्ग तेणे जोयो छे, ते
मार्गे निःशंक चाल्यो जाय छे. पूर्वकर्मनो उदय क््यां एनो छे? एनी वर्तमान
परिणति कांई उदय तरफ नथी