(छूटो नहि पण घेरायेलो) होय ने लाखो–करोडो जीवो तेने माननारा होय,
तोपण ते शोभतो नथी, प्रशंसा पामतो नथी; अरे, धर्ममां एनी शी किंमत!
‘पवित्र जैनदर्शन सिवाय बीजा कोई विपरीत मार्गने आटला बधा जीवो माने छे
माटे तेमां कांईक शोभा हशे! कंईक साचुं हशे! ’ –तो कहे छे के ना; एमां अंशमात्र
शोभा नथी, सत्य नथी. एवा मिथ्यामार्गमां लाखो जीवो होय तोपण तेओ
शोभा पामता नथी, केमके आनंदथी भरेला अमृतमार्गनी तेओने खबर नथी,
तेओ तो मिथ्यात्वना झेरथी भरेला मार्गमां जई रह्या छे. जगतमां कोई कुपंथने
लाखो माणसो माने तेथी धर्मीने शंका न पडे के तेमां कांईक शोभा हशे! ने
सत्पंथमां बहु थोडा जीवो होय, पोते एकलो होय तोपण धर्मीने सन्देह न पडे के
सत्य मार्ग आ हशे के बीजो हशे!–ते तो निःशंकपणे परम प्रीतिपूर्वक सर्वज्ञना
कहेला पवित्र मार्गने साधे छे. आ रीते सत्पंथमां एटले के मोक्ष– मार्गमां
सम्यग्द्रष्टि एकलो पण शोभे छे. जगतनी प्रतिकूळतानो घेरो एने सम्यक्त्वथी
डगावी शकतो नथी. मोक्षमार्गने अहीं आनंदथी भरेलो अमृतमार्ग
जगतमां ते शोभे छे. माटे आवा सम्यक्त्वने निश्चलपणे धारण करवुं. मुनिधर्म हो
के श्रावकधर्म हो, तेमां सम्यग्दर्शन सौथी पहेलुं छे. सम्यग्दर्शन वगर श्रावकधर्म के
मुनिधर्म होय नहि. माटे हे जीव! तारे धर्म करवो होय ने धर्मी थवुं होय तो पहेलांं
तुं आवा सम्यग्दर्शननी आराधना कर; सम्यग्दर्शनथी ज धर्मीपणुं थशे.