हितनुं मूळ कारण तो सम्यग्दर्शन छे. करोडो–अबजो जीवोमां एकाद सम्यग्द्रष्टि
होय तोपण ते उत्तम छे–प्रशंसनीय छे, ने विपरीत मार्गमां घणा होय तोपण ते
प्रशंसनीय नथी. आम समजीने हे जीव! तुं सम्यग्दर्शननी आराधना कर, एम
तात्पर्य छे.
पोताना चिदानंद स्वभावनी अनुभूतिथी ज छे. हजारो घेटाना टोळा करतां वनमां
एकलो सिंह पण शोभे छे, तेम जगतना लाखो जीवोमां सम्यग्द्रष्टि एकलो पण
(गृहस्थपणामां होय तोपण) शोभे छे. सम्यग्दर्शन वगरनो मुनि शोभतो नथी
ने सम्यग्द्रष्टि मुनिपणा वगर पण शोभे छे, ते मोक्षनो साधक छे, ते
जिनेश्वरदेवनो पुत्र छे; लाख प्रतिकूळता वच्चे पण ते जिनशासनमां शोभे छे.
सम्यग्दर्शन वगरनो जीव क््यांय शोभतो नथी. मिथ्याद्रष्टिवंत करोडो ने
सम्यग्द्रष्टिवंत एकाद, छतां सम्यग्द्रष्टि ज शोभे छे. कीडीनां टोळां झाझा भेगा थाय
तेथी कांई तेनी किंमत वधी जाय नहि, तेम मिथ्याद्रष्टि जीवो झाझा भेगा थाय तेथी
कांई प्रशंसा पामे नहि. सम्यग्दर्शन वगर पुण्यना ठाठ भेगा थाय तोपण आत्मा
शोभे नहि; ने नरकमां ज्यां हजारो–लाखो के असंख्याता वर्षो सुधी अनाजनो कण
के पाणीनुं टीपुं मळतुं नथी त्यां पण आनंदकंद आत्मानुं भान करीने
सम्यग्दर्शनथी आत्मा शोभी ऊठे छे. प्रतिकूळता ते कांई दोष नथी ने अनुकूळता ते
कांई गुण नथी. गुण–दोषनो संबंध बहारना संयोग साथे नथी; आत्माना
स्वभावनी ने सर्वज्ञदेवनी श्रद्धा साची छे के खोटी तेना उपर गुण–दोषनो आधार
छे. धर्मी जीव पोताना स्वभावना अनुभवथी–श्रद्धाथी अत्यंत संतुष्ट वर्ते छे,
जगतना कोई संयोगनी आकांक्षा तेने नथी. सम्यग्दर्शन वगरनो कोई जीव हजारो
शिष्योथी पूजातो होय–तोपण ते प्रशंसनीय नथी, ने कोईक सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्माने
माननार कोई न होय तोपण ते प्रशंसनीय छे, केमके ते मोक्षनो पंथी छे. ते
सर्वज्ञनो ‘लघुनन्दन’ छे; मुनि ते सर्वज्ञना मोटा पुत्र छे ने समकिती ते लघुनन्दन
एटले नानो पुत्र छे. भले नानो, पण छे तो सर्वज्ञनो वारसदार, ते अल्पकाळमां
त्रण लोकनो नाथ सर्वज्ञ थशे.